सौरभ:
आज फिर से ये दिन आ गया, पूरे साल में एक यही दिन है जो मुझे हमेशा दुविधा में डाल देता है। इण्डिया से भेजी गई अपनी राखी बांधू या नहीं, शिल्पी हर साल भेजती है और हर साल ही मुझे इस कशमकश के गुजरना पड़ता है। ना पहनूं तो शिल्पी के साथ नाइंसाफी, उस बेचारी का क्या दोष और अगर पहन लूं तो जाने अनजाने प्रिया का दिल जरूर ही दुखा जाऊँगा। हालांकि प्रिया भरपूर कोशिश करती है कि आज के दिन वो नार्मल दिखे पर मैं आखिर पति हूँ उसका, जानता हूं कि वो मन ही मन खूब रोती है, क्या जाने छुप के भी रोती हों। मैं कुछ कर भी तो नहीं पाता, उसको उसके भाई से यूँ जुदा करने वाला भी तो मैं ही हूँ, किस मुँह से उसे समझाऊं और समझाने को है भी क्या। जब मैं खुद राखी टाइम पर ना पहुंचे तो इतना उतावला हो जाता हूँ और ये बेचारी तो कभी भेज ही नहीं सकती।
कुंदन और मैं बहुत अच्छे दोस्त थे, लोग तो हमें सगा भाई ही समझते। ग्रेजुएशन में मिला था ये, ट्रांसफर ले कर जब पहली बार उस कॉलेज में एडमिशन लिया तो नया होने के कारण बाकी लड़के थोड़ा मजा लेने के मूड में रहते पर ये बन्दा बिलकुल अलग ही था, पढ़ाई लिखाई में तो बस पास भर हो लेता पर बाकी चीजों में नम्बर वन था। थोड़ा गुंडा टाइप था, इसे पता नहीं क्या पसन्द आया मुझमे कि दोस्त बन गया मेरा। हम उत्तर दख्खिन थे एक दूसरे के, फिर भी, वो कहते हैं न ऑपोज़िट एट्रैक्ट्स।
मेरे घर का दुलारा था ये और मैं इसके घर का। मेरे पापा मम्मी को तो जैसे इसने गोद ले लिया हो, साले तो ना तो कहना ही नहीं आता था, वो लोग जो भी कह दे, बस हुक्म की देर और ये जिन्न की तरह उसे पूरा करने में लग जाता। शिल्पी भी मुझसे ज्यादा इसी को भैया भैया बोल सारे काम निकलवा लेती। ये तो चोट्टी थी ही शुरू से, मैं इसके झांसे में नही आता पर कुंदन तो भोला शंकर, जो कह दो, नो इफ नो बट, काम हो जाना है चाहे जैसे भी हो।
इसके घर में मेरी इज्जत होने का सिर्फ एक कारण था कि मैं टॉपर था, पढ़ाई में सबसे आगे। मेरी वजह से बेचारे को रोज ताने मिलते, साला पढ़ता भी तो नहीं था कभी। बस एग्जाम से पहले मेरे घर में डेरा डाल लेता या मुझे अपने घर बिठा लेता, इसके लिए रात भर की पढाई काफी होती सेमेस्टर क्लियर करने के लिए। दिमाग तो था बन्दे में, पर खुराफात से बचे तो पढ़ाई में लगाए न। कभी किसी का सर फोड़ रहा होता या कहीं कोई समझौता, कभी इस यूनिवर्सिटी में तो कभी उस डिग्री कॉलेज में चुनाव लड़वा रहा होता, ना जाने किन किन फंदों में उलझा ही रहता हमेशा।
प्रिया इसकी सगी जुड़वाँ बहन है। हमउम्र होने की वजह से इन दोनों के बीच भी दोस्ती वाला रिश्ता ही था, तो मेरे से भी वैसा ही रिश्ता बन गया था। मैं थोड़ा शर्मिला टाइप इंसान हूं, जब भी ये सामने आती मेरी बत्ती गोल कर जाती, शरारत में तो कुंदन का बाप थी ये। पर मुझे भी इसकी शरारतें अच्छी लगती। कितनों को नसीब होता है भई लड़कियों से छिड़ना। सच मानिए, मैंने बहुत कोशिश की कि इस चक्कर में ना पडूं पर इस क्यूपिड ने तो अपना तीर निशाने पर बैठा के मारा था, क्या करता।
पता था, जानता था, और वो भी जानती थी कि कोई भी ना तो इसे समझेगा ना स्वीकार ही करेगा। क्या करता, उसकी शादी तय हो रही थी, कैसे हो जाने देता, और वो भी तो जिद किये बैठी थी। भाग गए हम, कितना वाहियात सा शब्द है ना 'भाग गये'। अबे पागल कुत्ते ने काटा था या भागने का शौक था, करा दी होती शादी। तुम भी चैन से रहते और हम भी, पर नहीं भई, तुम्हे तो इस समाज में अपनी ये बित्ते भर नाक जो संभालनी है। देख लो इसका अंजाम, ना तुम चैन से होगे और हम तो बस जी ही रहे हैं जैसे तैसे।
साले कुंदन, माफ़ कर दे यार अपने दोस्त को...
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कुंदन:
बाई गॉड, जिंदगी में इतने धोखे खाये पर कभी इतना अफ़सोस ना हुआ, ई साला सौरभवा कमीना जो धोखा दिया है न। ई साले को हम छोड़ेंगे नहीं। मने का, समझ का लिया है उसने कि कुंदन को धोखा देना और फिर उसे पचा जाना इतना आसान है का। मिलो साले तुम बताते हैं तुम्हे।
अबे, दुनिया में सारी लड़कियां मर गई रही जो अपने दोस्त के घर में ही डाका डाल दिए। साले, एक्को बार सोचे भी नहीं कि कर का रहे हो, किसके साथ कर रहे हो। कमीने, भाई मानते थे हम तुम्हें, का नहीं किये बे हम तुम्हारे लिए। तुम्हरे बाउजी बीमार थे तो हर पल तुम्हारे साथ खड़े रहे एक टांग पर, तुमरी माइ को अपनी गाड़ी में बैठा के चन्दौली ले जाते थे वैद्य जी के यहां गठिया के इलाज के लिए, काहे से कि तुम साले इंटरव्यू की तैयारी कर सको। और प्रियवा से जियादा तुमरी शिल्पीया को अपनी बहन माने थे बे, और तुम साले बेगैरत इंसान, हमरी बहन से ही फ्लर्ट किये। हमारी नाक के नीचे तुम ये गुल खिलाये और हमको अपना दोस्त भी बोलते रहे। का सच में तुम्हारे मन में एक्को बार ख्याल नहीं आया कि तुम कर क्या रहे हो।
आज भी वो दिन याद है जब तुम आये थे हमे बताने कि तुम प्रिया से शादी करना चाहते हो, हम समझाए थे ना तुम्हे कि संभव ही नहीं है ये, और तुम भी तो चले गए थे, और वादा भी कर गए थे कि कोई गलत काम नहीं करोगे, फिर साले मक्कार, चार ही दिन बाद तुम अपने घर ले गए हमारी बहन को भगा के। अरे शुक्र मनाओ कि शिल्पी आ गई थी बीच में, वरना महादेव की सौगंध, तुमरा तो उसी दिन राम नाम सत कर दिये थे हम।
तुम भाग के यहां अमरीका आ गए, का सोचे थे बे कि अमरीका मंगल पर हैं, और कुंदन इतना गवाँर है कि यहां आ ही नहीं सकता। देखो बे, आ गए है हम, और बेटा थोड़ी ही देर में तुमरे दरवाजे पे होंगे, इस बार कोई शिल्पी फिल्पी नहीं आएगी तुम्हे बचाने, इस बार का करोगे मुन्ना। आ रहे हैं बे, आ रहे हैं....
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प्रिया:
कोई ना कोई बहाना बना कर ये आज के दिन छुट्टी ले ही लेते हैं। सोचते हैं कि कैसे भी प्रिया को खुश रखूं आज के दिन। सोचते हैं कि मुझे आज के दिन अपने घर परिवार की याद आती है। मेरे क्यूट हबि, मुझे सिर्फ आज नहीं, रोज ही याद आती हैं उन सबकी। पर रोज रोज तो रो नहीं सकती न, और तुम्हारा क्या हाल हो जाता है मुझे परेशान देखकर। तुम भरपूर कोशिश करते हो मुझे खुश रखने की, अपनी राखी भी नहीं बाँधना चाहते कि कहीं मुझे बुरा ना लगे। पगलू, मुझे क्यों लगेगा बुरा, हाँ पर याद तो आती है ना। क्या करूँ, कैसे भूल जाऊं उन्हें।
कुंदन बस मुझसे 2 मिनट ही तो छोटा है। उसका मुझे चुड़ैल और चोट्टी कहना कितना बुरा लगता था मुझे, पर जब भी कोई बड़ा काण्ड करता माँ पा की डांट से बचने के लिए दीदी दीदी बोल मुझसे मदद मांगता। कितना भोला कितना प्यारा लगता उस समय।
भाई, फिर ना जाने कहां से तुम्हारा एक दोस्त आ गया हमारी जिंदगी में। तुमने ही तो मिलवाया था उससे, कितना भोंदू टाइप था तुम्हारा दोस्त। तुम्हारे बाकी दोस्तों से बिलकुल अलग, चुप शर्मीला और शरीफ। शराफत पहचानने का खास सिस्टम लगा होता है हम लड़कियों में।
तुम्हे शायद लगता हो भाई कि तुम्हारे दोस्त ने धोखा दिया और तुम्हारी बहन तुमसे छीन ले गया, पर सच तो ये है भाई कि तुम्हारी बहन ने तुम्हारे दोस्त को तुमसे छीन लिया। पहल तो मैंने की थी भाई, तुम्हें समझाना भी चाहा था पर तुम बैल बुध्दि जो हो, कहां समझे।
सुकून तलाशते हम यहां आ गए पर आज इतने सालों बाद भी हम तुम्हें याद करते हैं कुंदन। हमें माफ़ कर दो भाई...
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ओफ्फो, अरे कभी इस फोन को छोड़ भी दिया करो, कब से तो डोरबेल बजी जा रही है, ये नहीं कि उठ के देख ही लूँ... अब क्या आ रहे हो, जाओ पसरो अपनी मुई चेयर पे, अब तो आ ही गई मैं। ये भी पता नहीं कौन आ गया दोपहर के समय, आ गई बबा....
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कौन है प्रिया.... कुंदन तू....
हाँ कमीने मैं, अंदर नहीं बुलाएगी दी।
हूं, घर तो बड़ा अच्छा बना रखा है यार,........ अरे तुम दोनों ऐसे क्या देख रहे हो, शॉक लगा क्या, आओ आओ, बैठो ना, तुम्हारा ही तो घर है।...........
यार बड़ी प्यास लगी है, पानी वाली पिलाने का रिवाज है तुम्हारे अमरिक्का में। और हां चोट्टी सुन, आज शाम को ही वापस जाना है मुझे, जो करना वरना है जल्दी कर लियो .................
अबे घूर क्यों रहे हो तुम दोनों, राखी नहीं मिलती क्या तुम्हारे अमरीका में.....
अजीत
29 अगस्त 16