आज सुपवा बड़ा खुश दिख रहा है। नाम छोड़िये, दोस्तन में ऐसे ही नाम चलते हैं, कान बड़े तो सुपवा, आँखें भूरी तो भुरिया, रंग गोरा तो दहीबड़ा। हाँ तो सुपवा बड़ा खुश, मने शाम को पार्टी पक्की। दोस्ती का कायदा, कोई भी ख़ुशी, सेलिब्रेट विथ दारू, कोई भी दुःख, गमगलत वाया दारू।
शर्मा - सुपवा संवाद:
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"सुपवा, बड़ा खुश दिख रहे हो बे, का भवा, कउनो गुड न्यूज़?"
"नाही बे, ऐसी कोई बात नहीं"।
"बा बेटा, कउनो बात नहीं तो ई चेहरा कैसे जगमग कर रहा है, बताओ ना बे, काहे भाव खा रहे हो"।
"बोले ना बे तुमसे, कोई बात नहीं है। मगज ना चाटो, जाओ अपनी टेबल पर, काम कर लो थोड़ा"।
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"सुपवा, बड़ा खुश दिख रहे हो बे, का भवा, कउनो गुड न्यूज़?"
"नाही बे, ऐसी कोई बात नहीं"।
"बा बेटा, कउनो बात नहीं तो ई चेहरा कैसे जगमग कर रहा है, बताओ ना बे, काहे भाव खा रहे हो"।
"बोले ना बे तुमसे, कोई बात नहीं है। मगज ना चाटो, जाओ अपनी टेबल पर, काम कर लो थोड़ा"।
शर्मा- भुरिया संवाद:
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"का भुरिया, तुमको का भवा, काहे मुँह लटकाये हो भाई, भउजी ने हाथ सेक दिया का आज तुमपर"।
"देख बे बभना, ढेर होशियार ना बना करो, एक तो वैेसही दिमाग गरम है, और मत तपाओ हमे।"
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"का भुरिया, तुमको का भवा, काहे मुँह लटकाये हो भाई, भउजी ने हाथ सेक दिया का आज तुमपर"।
"देख बे बभना, ढेर होशियार ना बना करो, एक तो वैेसही दिमाग गरम है, और मत तपाओ हमे।"
शर्मा-ठाकुर संवाद:
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"और मिस्टर बद्तमीज, का हाल चाल"।
"बढ़िया, अपनी सुनाओ"।
"अबे ठाकुर, ये बताओ कि कोई स्पेशल बात हुई है का, ई सुपवा बड़ा खुश दिख रहा है, और उ भुरिया इतना उदास काहे बैठा है"।
"तुझे बड़ी रहती है यार, कौन उदास कौन खुश। अच्छा एक बात का सोच के जवाब दे, किसी दोस्त की तरक्की पर दोस्त खुश होता है कि उदास। हैं, उदास ना, तो भुरिया इसीलिए उदास है, और सुपवा तरक्की पाकर खुश"।
"कैसी तरक्की भाई, बुझौनी मत बुझाओ, साफ़ साफ़ फूटो अपनी बात का मतबल"।
"कुछ नहीं बे, सरकार ने सुपवा की बिरादरी को "मण्डल" बिरादरी से प्रमोट कर "भीम" बिरादरी में कर दिया है। अब बुझे, इतने साल के विकास के बाद अगला पिछड़ा से दलित बन गया तो का खुश भी ना हो। रही भुरिया की बात, तो वो ये सोच के परेशान कि यहां तो पहिले से इतने भरे पड़े हैं, सुपवा जैसे कुल 17 और आ गए। साथ में ये भी कि ये तो प्रमोट होकर दलित बन गए, हम तो आज भी वहीं के वहीं।"
"--- --- ---"
"का हुआ, चुपा काहे गये, अबे तुम्हें का फर्क पड़ा, तुम तो कल भी जो थे, आज भी वही हो, कल भी वही रहोगे, का लेकर आये थे बाकि का लेकर जाओगे। अच्छा जाओ, फिर से पूछ के आओ सुपवा से, पार्टी देगा कि नहीं, नहीं तो तुम्हारा गमगलत हम करवाते हैं आज"।
प्रेम से बोलो जय समाजवाद
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अजीत
24 दिसम्बर 16
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"और मिस्टर बद्तमीज, का हाल चाल"।
"बढ़िया, अपनी सुनाओ"।
"अबे ठाकुर, ये बताओ कि कोई स्पेशल बात हुई है का, ई सुपवा बड़ा खुश दिख रहा है, और उ भुरिया इतना उदास काहे बैठा है"।
"तुझे बड़ी रहती है यार, कौन उदास कौन खुश। अच्छा एक बात का सोच के जवाब दे, किसी दोस्त की तरक्की पर दोस्त खुश होता है कि उदास। हैं, उदास ना, तो भुरिया इसीलिए उदास है, और सुपवा तरक्की पाकर खुश"।
"कैसी तरक्की भाई, बुझौनी मत बुझाओ, साफ़ साफ़ फूटो अपनी बात का मतबल"।
"कुछ नहीं बे, सरकार ने सुपवा की बिरादरी को "मण्डल" बिरादरी से प्रमोट कर "भीम" बिरादरी में कर दिया है। अब बुझे, इतने साल के विकास के बाद अगला पिछड़ा से दलित बन गया तो का खुश भी ना हो। रही भुरिया की बात, तो वो ये सोच के परेशान कि यहां तो पहिले से इतने भरे पड़े हैं, सुपवा जैसे कुल 17 और आ गए। साथ में ये भी कि ये तो प्रमोट होकर दलित बन गए, हम तो आज भी वहीं के वहीं।"
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"का हुआ, चुपा काहे गये, अबे तुम्हें का फर्क पड़ा, तुम तो कल भी जो थे, आज भी वही हो, कल भी वही रहोगे, का लेकर आये थे बाकि का लेकर जाओगे। अच्छा जाओ, फिर से पूछ के आओ सुपवा से, पार्टी देगा कि नहीं, नहीं तो तुम्हारा गमगलत हम करवाते हैं आज"।
प्रेम से बोलो जय समाजवाद
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अजीत
24 दिसम्बर 16
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