आज किसी को राखी पोस्ट करने का हुक्म मिला तो याद आया कि राखी आने वाली है, पोस्टऑफिस पर इतनी भीड़, इतनी गर्मी, हालत खराब। क्यों मनाते हैं ये रक्षाबंधन? बहन अपना प्यार जताती है और भाई उसकी रक्षा का वचन देते हैं, पर सवाल ये है कि साल में 1 ही दिन क्यों, और अगर ये त्यौहार ना भी हो तो क्या बहन प्यार नहीं करेगी या भाई उसकी रक्षा नहीं करेगा। कितनी मजाकिया बात है न। क्यों जरूरत पड़ी इस 1 दिन को इतना भाव देने की, भाई बहन का प्यार मोहताज है क्या इस दिन का, गजब बेवकूफी है।
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कितनी चुभ रही हैं ना ये बातें, खूब गुस्सा आ रहा होगा। आना भी चाहिए, मैं पढ़ता तो मुझे भी आता। कुछ दिन पहले मदर्स डे आया था, उसके पहले फादर्स डे, तब कुछ संस्कृति रक्षकों ने कुछ ऐसी ही बातें की थी कि माँ बाप को प्यार सम्मान देने के लिए 'दिन' मनाने की क्या जरूरत है, साल भर करो प्यार सम्मान। अब ऐसा ही कुछ सिस्टर्स डे होता तब भी ऐसे ही लिजलिजे तर्क सुनाई देते। राखी का भावानुवाद किया जाए तो सिस्टर्स डे या ब्रदर्स डे ही तो बनेगा, मतलब कोई बात अगर किसी और भाषा में हो तो बिना सोचे जाने विरोध कर दो।
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बचपन में कहानी सुनी थी कि किसी हिन्दू रानी ने किसी बादशाह को राखी भेजी और वो चल पड़ा उसकी रक्षा को। कितना अच्छा लगता था कि देखो एक विदेशी हमारी संस्कृति का कितना मान करता है, पर जब किसी विदेशी त्यौहार या 'दिन' की बात आती है तो जुबान से मार काट मचानी शुरू कर देते हैं हम। ऐसा ही 1 दिन होता है वेलेंटाइन, क्या होता है उस दिन सबको पता ही होगा, रक्षकों की फ़ौज निकलती है सड़कों और सोशल मीडिया पर। ये उसी संस्कृति की रक्षा करते हैं जिसमें कृष्ण रास रचाते हैं, पार्वती तपस्या करती हैं शिव को पाने की, सुभद्रा अर्जुन का हरण करती हैं और रुक्मिणी अरेंज मैरिज नहीं करना चाहती तो पूरा यदुवंश ही आ जाता है उन्हें ले जाने, स्वयं का वर चुनने के लिए स्वयंवर किये जाते हैं। पर चूँकि ये वेलेंटाइन शब्द विदेशी है, बाहर से आया है, इसलिए इसका तो विरोध करना ही है।
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क्या अच्छा क्या बुरा, खुद से क्यों नहीं सोचते, जनरलाइज क्यों कर देते हैं हर चीज को। बुराई तो हर जगह ही हैं, आपमें भी और उनमें भी, पर ये श्रेष्ठ होने का जो अहंकार पाल लिया है ना हमने...
हमारी संस्कृति क्या इसलिए अच्छी थी कि हम दूसरों को गालियां पढ़ते थे या इसलिए कि हमने सदैव ही दूसरों का सम्मान किया और जो सत था, जो उत्तम था उसे अंगीकार कर लिया।
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कितनी चुभ रही हैं ना ये बातें, खूब गुस्सा आ रहा होगा। आना भी चाहिए, मैं पढ़ता तो मुझे भी आता। कुछ दिन पहले मदर्स डे आया था, उसके पहले फादर्स डे, तब कुछ संस्कृति रक्षकों ने कुछ ऐसी ही बातें की थी कि माँ बाप को प्यार सम्मान देने के लिए 'दिन' मनाने की क्या जरूरत है, साल भर करो प्यार सम्मान। अब ऐसा ही कुछ सिस्टर्स डे होता तब भी ऐसे ही लिजलिजे तर्क सुनाई देते। राखी का भावानुवाद किया जाए तो सिस्टर्स डे या ब्रदर्स डे ही तो बनेगा, मतलब कोई बात अगर किसी और भाषा में हो तो बिना सोचे जाने विरोध कर दो।
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बचपन में कहानी सुनी थी कि किसी हिन्दू रानी ने किसी बादशाह को राखी भेजी और वो चल पड़ा उसकी रक्षा को। कितना अच्छा लगता था कि देखो एक विदेशी हमारी संस्कृति का कितना मान करता है, पर जब किसी विदेशी त्यौहार या 'दिन' की बात आती है तो जुबान से मार काट मचानी शुरू कर देते हैं हम। ऐसा ही 1 दिन होता है वेलेंटाइन, क्या होता है उस दिन सबको पता ही होगा, रक्षकों की फ़ौज निकलती है सड़कों और सोशल मीडिया पर। ये उसी संस्कृति की रक्षा करते हैं जिसमें कृष्ण रास रचाते हैं, पार्वती तपस्या करती हैं शिव को पाने की, सुभद्रा अर्जुन का हरण करती हैं और रुक्मिणी अरेंज मैरिज नहीं करना चाहती तो पूरा यदुवंश ही आ जाता है उन्हें ले जाने, स्वयं का वर चुनने के लिए स्वयंवर किये जाते हैं। पर चूँकि ये वेलेंटाइन शब्द विदेशी है, बाहर से आया है, इसलिए इसका तो विरोध करना ही है।
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क्या अच्छा क्या बुरा, खुद से क्यों नहीं सोचते, जनरलाइज क्यों कर देते हैं हर चीज को। बुराई तो हर जगह ही हैं, आपमें भी और उनमें भी, पर ये श्रेष्ठ होने का जो अहंकार पाल लिया है ना हमने...
हमारी संस्कृति क्या इसलिए अच्छी थी कि हम दूसरों को गालियां पढ़ते थे या इसलिए कि हमने सदैव ही दूसरों का सम्मान किया और जो सत था, जो उत्तम था उसे अंगीकार कर लिया।
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पावन सावन और आने वाले त्योहारों की हार्दिक बधाई
अजीत
5 अगस्त 2016
5 अगस्त 2016
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