Monday, 12 December 2016

दोहरे मापदंड


दुनिया में भांति भांति के प्राणी, उन्हीं में से एक बिरादरी मुँहफट बद्तमीजों की। इसी बिरादरी से ठाकुर नाम का एक मित्र है, अब लोग तो ऐसा ही कहते हैं, हालाँकि मुझे कभी नहीं लगा, पर लोग अक्सर उसे बद्तमीज कह कर निकल जाते।

पिछली सर्दियों में एक बुजुर्ग सहकर्मी के देहांत पर घाट जाना हुआ। पुरानी रीत के अनुसार हम सब अपने कपड़े साथ ले गए थे, पर ये बन्दा यूँ ही, खाली हाथ। अंतिम क्रिया सम्पन्न होने के बाद सबने डुबकी लगाई, पर ये महाशय नहीं उतरे। सबने सोचा कि कपड़े नहीं लाया, या शायद ठण्ड है, इसलिए नहा नहीं रहा।
वापसी में उसके कमरे से होते हुए आना था, साथ में एक और सहकर्मी थे। घर पहुंच कर भी बन्दा नहाने नहीं गया तो सहकर्मी से रहा नहीं गया, बोल पड़े कि नहा ले भाई। इसने पूरी ढिठाई से कहा कि मैं तो नहीं नहाता, या बताओ कि क्यों नहाऊं। सहकर्मी बोले, भाई रीत है, मुर्दा जला के आओ तो नहाना होता है। अब इसका जवाब हालांकि मुझे उस समय थोड़ा अजीब सा लगा पर...। बोला, अच्छा, और जो तुम कल मुर्गे की टँगड़ी नोच रहे थे, हड्डियां तक चूस गये उसकी, फिर नहाया था क्या? था तो वो भी मुर्दा ही, जलाया तो उसको भी था खाने से पहले, या उसे जीव नहीं मानते, या मुर्दा खाना ना हो तो नहाओ, और खाना हो तो ना नहाओ, बा भई।
थोड़ी देर पहले ही गमी से वापस आया था, धार्मिक विश्वास भी हैं, अपना ही एक साथी मरा था, इसलिए हँस तो नहीं पाया पर बात तो पते की थी उसकी।
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पर कल तो उसे मैंने भी बद्तमीज कह ही दिया। हमारे साथ रिटायरमेंट की उम्र के नजदीक पहुंचे एक साहब काम करते थे। अक्सर आदमी येन केन अहंकार पाल ही लेता है, इन्हें भी था/है। इन्हें अपनी उम्र का अहंकार। इनके फैसले सामान्य रूप से कभी सही कभी गलत होते रहते, पर साहब कभी भी नई उम्र के सहयोगियों की सलाह नहीं मानते। अक्सर ही कह जाते, अब तुम मुझे सिखाओगे, बच्चे, ये बाल सफेद हो गए यही काम करते करते, 24 साल की बेटी है मेरी, मुझे मत बताओ कि क्या करना है, कैसे करना है।

हुआ यूं कि रोज की तरह कल भी शाम को टहलने के बाद हम लल्ला की दुकान पर चाय लड़ा रहे थे (हम बनारसी लोग चाय पीते नहीं, लड़ाते हैं)। टहलते हुए ये साहब भी आ गए। कर्टसी, चाय के लिए पूछा तो पसर गए। बगल में चाट गोलगप्पे की दुकान, हमेशा ही लड़के लड़कियों की भीड़ लगी रहती है यहां। बैठते समय इन्होंने अपनी आँखों का फोकस चाट की दुकान पर लगा रहे, इसका विशेष ध्यान दिया था।
* आगे आने वाले कुछ 'शब्द' शालीन नहीं हैं, पर मजबूरी है, अग्रिम क्षमा।
थोड़ी देर बाद मुझसे बोले, डाक साब, उसे देखिये, क्या माल है। पहली बार ही उनके मुंह से ऐसा कुछ सुना, रिटायर आदमी, अचंभित रह गया। मेरे कुछ बोलने से पहले ही मित्र को संबोधित कर बोल पड़े, ठाकुर, देखो तो क्या बनी हुई है, भई चीज हो तो ऐसी। देखो देखो, अबे हम पारखी नजर रखते हैं, तुम लोग तो अभी बच्चे हो बच्चे, क्यों, क्या कहते हो। ठाकुर ने बड़ी शांति से जवाब दिया, हां साहब, सही कह रहे हो, इतना अनुभव है आपको, आप नहीं जानोगे तो कौन जानेगा, आखिर 26 साल की लड़की है आपकी।

उन्होंने जैसे तैसे चाय में अपना सर घुसाया और मैं जोर से हँसते हुए बोल पड़ा, "बड़े बद्तमीज हो बे तुम"।
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अजीत
13 दिसम्बर 16

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