पुस्तक कला नाम का एक विषय हुआ करता था, छोटी मोटी घरेलू चीजें, सजावटी सामान बनाना सिखाते थे उसमें। चिरौरी करके बीस पच्चीस रूपये निकलवा लेते मम्मी से, सुतली रस्सी और रंगीन अबरी पेपर खरीद लाते। गोंद घर में ही बना लेते आंटे का, बदबू बहुत आती थी उससे। जैसे तैसे काट कूट के बनाते ढेरों रंगीन झंडियां, पूरी छत पर कतरने उड़ा करती।
वैसे बाकी तैयारियां एक महीने पहले से ही शुरू हो जाती थी, छोटा सा स्कूल था हमारा, जैसे जैसे दिन नजदीक आते, क्लासेज कम लगती, तैयारी का समय बढ़ता जाता। कोई "सारे जहां से अच्छा..., हम होंगे कामयाब..., ऐ मेरे वतन के लोगों..." जैसे गाने गाता तो कोई लंबी लंबी स्पीचें रटता, कुछ लड़कियां डांस करती। डांस वांस तो हमें आता नहीं था, पर उस समय गला सुरीला था, तो एक गाने के ग्रुप में शामिल कर लिया गया। साथ में सुर में सुर मिला लेते, पर गाना याद नहीं हुआ, प्रिंसिपल मैडम ने पकड़ लिया कि ये तो कमजोर कड़ी है, ग्रुप से हो गए बाहर। फिर ये सोचकर कि बालक मन पर कोई बुरा प्रभाव ना पड़े तो चुटकुला सुनाने का काम दिया हमें।
वैसे बाकी तैयारियां एक महीने पहले से ही शुरू हो जाती थी, छोटा सा स्कूल था हमारा, जैसे जैसे दिन नजदीक आते, क्लासेज कम लगती, तैयारी का समय बढ़ता जाता। कोई "सारे जहां से अच्छा..., हम होंगे कामयाब..., ऐ मेरे वतन के लोगों..." जैसे गाने गाता तो कोई लंबी लंबी स्पीचें रटता, कुछ लड़कियां डांस करती। डांस वांस तो हमें आता नहीं था, पर उस समय गला सुरीला था, तो एक गाने के ग्रुप में शामिल कर लिया गया। साथ में सुर में सुर मिला लेते, पर गाना याद नहीं हुआ, प्रिंसिपल मैडम ने पकड़ लिया कि ये तो कमजोर कड़ी है, ग्रुप से हो गए बाहर। फिर ये सोचकर कि बालक मन पर कोई बुरा प्रभाव ना पड़े तो चुटकुला सुनाने का काम दिया हमें।
गजब उन्माद सा था 14 की रात, नींद ही नहीं आ रही थी कि कब सुबह हो और कब भागें स्कूल। रात में 6-7 बार तो नींद टूटी होगी, बार बार अँधेरा देख गुस्सा आता। जैसे ही पहली किरण का आभास हुआ, फटाफट नहा वहा के तैयार, आधा अधूरा नाश्ता किया और पहुंच गए स्कूल। झंडे के अंदर डालने के लिए कितने ही घरों से मांग कर, या चोरी कर ढेर सारे फूल इकट्ठा किया गया। फिर हम दो लड़के छत पर चढ़े झंडा फिट करने, पहली दो बार तो हरा ऊपर और केसरिया नीचे हो गया था। सारे ही बच्चे छोटे मोटे काम कर रहे थे। फिर प्रभात फेरी निकालने की जल्दी मची। सबसे आगे तिरंगा लिए एक बालक, पीछे स्कूल का नाम लिखा बैनर लिए एक लड़का एक लड़की, और उनके पीछे पूरा स्कूल छोटे छोटे तिरंगों के साथ, मा साब और बहन जी लोग दाएं बाएं। बुलंद आवाज वाले लड़के नारा लगाते, पीछे वाले जय जिंदाबाद अमर रहे बोलते। ये वाला सबसे अच्छा लगता, अन्न जहां का .... वो है प्यारा....। लोग बाहर निकल निकल कर देखते। गार्जियन लोग दिख जाते जग में पानी लिए अपने अपने घर के बाहर। ऐसे ही गाते चीखते चिल्लाते यही कोई पांच सात किलोमीटर का चक्कर लगा वापस स्कूल पहुंचे, थक तो गये थे पर उत्साह कम नहीं हुआ था। लाइन लगा खड़े थे और प्रिंसिपल मैम ने रस्सी खींच दी। वो लहराता तिरंगा और उससे निकल कर हवा में तैरती हुई नीचे की ओर आती फूलों की पंखुड़ियां, आज भी याद आ जाती हैं।
जन गण मन के बाद तीन चार बोरिंग भाषण सुनने पड़े बड़े लोगों के, फिर हम बच्चों की बारी आई। नाच गाना, फिर मेरे नंबर से पहले प्रतिभा दीदी ने गाना गाया था, ऐ मेरे वतन के लोगों... गाते गाते खुद रो पड़ी, साथ मुझे भी रुला दिया (ये ताना कई बार सुन चुका हूं, 'मर्द होके रोते हो', उस समय तो निपट बालक ही था)। अब चढ़ तो गया स्टेज पर, पर चुटकुला याद आये तब ना, मन तो 'जो शहीद हुए हैं.....' पर अटका था। पीछे से किसी ने शुरू के कुछ शब्द बोले तो जैसे तैसे चुटकुला सूना दिया, कोई नहीं हँसा। फिर अंत में दोना भर बुनिया मिला था।
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अब लगता है कि शायद बच्चे ही बचे हैं जो मन से मनाते हैं 15 अगस्त। अहसास भी है किसी को कि कैसे और कितने संघर्ष से मिली हैं ये, क्या कोई वैल्यू बची है हमारी नजरों में इसकी, क्यों होगी, फ्री में जो मिल गई। अपने घर के सदस्य का बड्डे कितने जोशोखरोश से मनाते हैं पर देश के लिए इतनी लापरवाही। 4 जुलाई का अमेरिका या 14 जुलाई का फ्रांस देखिये और सोचिये कि आप कितने नाशुक्रे हैं।
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अब लगता है कि शायद बच्चे ही बचे हैं जो मन से मनाते हैं 15 अगस्त। अहसास भी है किसी को कि कैसे और कितने संघर्ष से मिली हैं ये, क्या कोई वैल्यू बची है हमारी नजरों में इसकी, क्यों होगी, फ्री में जो मिल गई। अपने घर के सदस्य का बड्डे कितने जोशोखरोश से मनाते हैं पर देश के लिए इतनी लापरवाही। 4 जुलाई का अमेरिका या 14 जुलाई का फ्रांस देखिये और सोचिये कि आप कितने नाशुक्रे हैं।
हर बात में दूसरों को, सरकार को गरिया दो पर खुद को मत देखना कभी। सबसे आसान काम जो है।
देशभक्ति सिर्फ फौजियों के लिए रिजर्व नहीं है और ना ही शहीद होना जरूरी है। जो करते हो बस वही करो, पर ईमानदारी से, इतना काफी है, इससे ज्यादा की जरूरत नहीं।
देशभक्ति सिर्फ फौजियों के लिए रिजर्व नहीं है और ना ही शहीद होना जरूरी है। जो करते हो बस वही करो, पर ईमानदारी से, इतना काफी है, इससे ज्यादा की जरूरत नहीं।
वंदे मातरम
अजीत
13 अगस्त 16
13 अगस्त 16
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