महान योद्धा के नाम पर पड़े हमारे गाँव में भी अनेकानेक महान लोग पैदा हुए। महान लोग ही अपने गांव घर परिवार का नाम रौशन करते हैं। उन्हीं में से एक मंगलप्रसाद वल्द दुक्खी सिंह। दुक्खी सिंह अभी शायद अपनी पीढ़ी के अंतिम नामलेवा बचे हैं, अपनी बिरादरी के तो यकीनन। इनका वर्तमान गुण तो इनकी आयु ही है, पर शाश्वत गुण है इनकी चमड़ी का रंग। ये इतने ज्यादा गहरे रंग मने काले रंग के हैं कि एक बार इन्हें स्टेशन से रिसीव करना था तो हमें बताया गया कि जो दूर से ही चमके वही तुम्हारे काका।
इनका रंग हमेशा ही मेरी बिरादरी के लोगों के लिए अजूबा रहा। देखिये कि ये ऐसे समाज में है जहां हमारे सारे ही आराध्य काले रंग के हैं, राम कृष्ण शिव शनि यम, फिर भी। हमारे यहां चमड़ी के रंग को जाति विशेष से जोड़ दिया जाता है, और जाति ये निर्धारित करती है कि आप चारपाई के सिरहाने बैठेंगे या पैताने या जमीन पर चिड़िया उड़ाने वाली मुद्रा में। कभी किसी के यहाँ शादी, मरण, कार्य प्रयोजन में जाते थे तो झट से सिरहाने बैठ जाते, एक तरह का इंडिकेशन दे देते कि भई हम भी तुममें से ही हैं, कुछ और ना समझ लेना। सुना कि खपरैल की पट्टियों से इतना घिस घिस कर नहाते थे कि पट्टियां काली से सफेद हो गई पर इन पर रत्ती फर्क ना पड़ा।
मंगलप्रसाद गांव के सबसे लखैरे टाइप बालक, हिन्दूपट्टी से कटहल चुरा कर मियापट्टी में कोए की मौज हो या मियापट्टी से मुर्गी चुरा कर हिन्दूपट्टी में दावत, मंगलू सबसे आगे। चोरी करना हमारे महापुरुषों के बाल-जीवन का अभिन्न अंग जो ठहरा। ये अलग बात कि किशन कन्हैया की मैय्या ने हल्का दण्ड दिया, और गांधी बाबा के बापू ने कुछ नहीं कहा, पर यहां तो जो सुताई होती थी कि अगल बगल के कितने ही बालक सुधर गये, पर ये तो फिर ये ही थे।
इधर की तरफ कोई मर जाए तो उसकी तेहरी के दिन उस गांव, कभी कभी तो 8-10 गांव के घरों में मर्दों का भोजन नहीं बनता। दोपहर बाद से ही लोग दल बाँध कर पूड़ी खाने चल देते हैं। ऐसे ही किसी अवसर पर दोनों बाप बेटा दिवंगत के घर तेरही में शामिल होने पहुंचे थे, पांत उठने में समय था तो अपनी पुरानी आदत अनुसार बाबू दुक्खी सिंह एक चारपाई के सिरहाने बैठ गए। कुछ बातें अनुभव से आती हैं, और नवजवानों में वो अनुभव कहाँ, कुछ शिक्षा संस्कार का दोष, तो एक नौजवान को एक काले आदमी का यूँ चारपाई के सिरहाने बैठना खल गया। रंग की गलफत में गालियों और जातिसूचक शब्दों का जो धाराप्रवाह प्रयोग किया उसने कि क्या बताएं।
मंगल को ये बात चुभ गई, उसने पहली बार अपने पिता की आँखों में जो शर्म झिझक देखी कि उसका रोयां रोयां उबल पड़ा, वही कसम खाई कि इस परगने का सबसे बड़ा आदमी बन के दिखायेगा।
बाकी तो इतिहास में दर्ज होने वाली कथा है। मेहनत रंग लाती है, मंगलप्रसाद जमीन जायदाद लिखा पढ़ी रजिस्ट्रार लग गए। इतना पैसा बनाया कि क्या कोई कभी देखा होगा। घर इतना भेजते कि खर्च करने के लिए हाथ कम पड़ जाते। दुक्खी को अब कोई दुख नहीं था। दूर होने की वजह से साल दो साल में एक बार अपने बेटेे और उसके परिवार से मिलने शहर चले जाते।
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पिछली बार जब शहर से वापस आये तो बड़े खुश खुश लग रहे थे। लोगों ने पूछा तो बताया कि "बचवा हमे बड़ा इज्जत बख्सलन भाई, इनकर दोस्त लोग आये रहे त हमहुँ ओइजे जा के बैठ गइनी, ओम्मा से एक जनी पुछलन कि भाई ये कौन साहब है, बचवा बोललन कि ये मेरे सरभेन्ट हैं।....
(कानों सुनी सत्य घटना)
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अजीत
17 दिसम्बर 16
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अजीत
17 दिसम्बर 16
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