Sunday, 17 July 2016

पूर्वाग्रह


थक गई हूँ मैं, क्या मैंने ठेका ले रखा है आदर्श बहू बनने का। हद्द हो गई है अब तो। सब कहने लग गए हैं कि ऋतू बदल गई है। मैं, ऋतू, जिसने अपने आप को सिर्फ इन लोगों के लिए पूरा का पूरा बदल लिया, यही लोग अब मुझे ताना मारते हैं, छी। जानते भी हैं ये कि मैंने क्या क्या नहीं किया आदर्श बहू बनने के लिए। सात साल पहले वाली ऋतू में और आज की ऋतू में जमीन आसमान का फर्क है। मैं तीन भाइयों की अकेली बहन, माँ बाप की लाडली बेटी, एमबीए किया है मैंने। चाहती तो प्रज्ञा की तरह मैं भी नौकरी कर सकती थी।
कितनी शरारती थी मैं, कितनी जिद्दी, जो चीज चाहिए तो चाहिए। पापा मम्मी सारे भाई एक टांग पर खड़े रहते, मुँह से बात निकलती और वो चीज मेरे पास होती।
कॉलेज टाइम में कितने लट्टू घूमते थे मेरे आगे पीछे, किसी को भाव नहीं देती थी, वो यूनिवर्सिटी का कैप्टन भी, कूल ड्यूड विशाल, कितना पीछे पड़ा था, पर मैं ये प्यार व्यार के चक्कर में नहीं पड़ना चाहती थी। मेरे घर में किसी ने लव मैरिज नहीं की थी, मुझे भी नहीं करनी थी।
किसी सहेली की शादी में देखा था इन्होंने मुझे, कुछ दिन बाद ही पापा जी और मम्मी जी को भेज दिया हमारे घर, रिश्ते की बात करने। बड़े व्यापारी परिवार से हैं ये लोग, पापा ने हाँ कर दी। पर शर्त ये रखी की पढ़ाई पूरी होने के बाद ही शादी होगी। मैंने कभी किचेन का मुँह नहीं देखा था, पर इस एक साल में खाना बनाना सीख लिया। साड़ी वाड़ी सिर्फ कॉलेज फंक्शन में पहना था। अब केवल साड़ी। कोई सुबह 8 बजे से पहले नहीं होती थी मेरी पर जब से इस घर में आई हूँ, नियम से 6 बजे उठ जाती हूँ। व्रत वगैरह भी रखने लगी। ये पूजा पाठ, सिन्दुर बिंदी, चूड़ी बिछिया ढकोसले लगते थे पर शादी के बाद लगता था कि जब सब पहनते हैं तो पहनना चाहिए। ये बम्बई जाना चाहते थे, वहां भी ब्रांच है इनकी, पर मैंने ही मना कर दिया, अच्छा लगता है क्या यूँ सास ससुर को अकेला छोड़ कर जाना, लोग क्या कहेंगे। और तो और मुझे बच्चियां कितनी पसंद हैं, पर जब मैं माँ बनने वाली थी तो कितनी मन्नते मांगी थी मैंने कि लड़का ही हो। भगवान ने मेरी सुन ली, गौरव 6 साल का है अब। 
जब से ये प्रज्ञा आई है, अरे मेरे देवर की बीवी, लव मैरिज है, मेरा तो सोच सोच के दिमाग पक गया है। नौकरी करती थी शादी से पहले, शादी के बाद भी नहीं छोड़ी, वो तो अब मुन्नी हुई है तो घर पर ही रहती है। कितनी प्यारी है मुन्नी, सब उसे खूब प्यार करते हैं। ये महरानी 8 बजे सो कर उठती हैं,खाना वाना बनाना नहीं आता इसे। व्रत वगैरह तो करती ही नहीं। कहती है, क्यों करने हैं ये ढकोसले, कभी मन आया तो मंगलसूत्र पहनती है वरना भूल गई तो भूल गई। सुना है देवर के साथ बम्बई जायेगी।
इसे तो कभी कोई कुछ बोलता नहीं, पर कल मैं जरा देर से क्या उठी, मम्मी जी ने ताना मार दिया, लगता है बड़ी बहू की तबियत खराब है। लो जी, इन महरानी को तो कोई कुछ नहीं कहता, और मुझे जो 7 साल से वो सब करती आई है, जो आदर्श बहू को करना चाहिए, ऐसा ताना। मैं थक गई हूँ। आप ही बताइए, क्या गलती है मेरी.....


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कल बहुत लोगों के फोन आये, सब मुझे कोस रहे थे कि मैं अपनी इतनी भोली भाली 'आदर्श' बहू के साथ ज्यादती करती हूँ। मुझे बहुत बुरा लगा, मुझसे दिक्कत थी तो मुझसे ही कहना था, पूरे मोहल्ले में ढिंढोरा पीटने की क्या जरूरत थी। और आप लोगों में भी मुझे विलेन मान लिया। आपका भी क्या कसूर, धारणा बन गई है कि सास तो जालिम ही होती है। अब जब उसने आप लोगो से अपनी व्यथा कह ही दी, तो मैं भी उससे क्या कहूँ, आप लोग ही उसे बता देना। मेरे कुछ कहने से पहले ऋतू की बातों को फिर से याद कर लीजियेगा।
मेरी दो बहुएं हैं, ऋतू और प्रज्ञा। ऋतू को मेरे बेटे ने पसंद किया था, वैसे ही जैसे प्रज्ञा को छोटे बेटे ने। बेटों की पसंद से शादी लव मैरिज ही तो मानी जायेगी ना। ऋतू इस घर में आई तो ये उसका ही फैसला था की वो जॉब नहीं करेगी, तो क्या मैं खुद उससे कहती कि जाओ जॉब करो। मैंने तो उसे हमेशा सुबह 6 बजे ही उठते देखा, मुझे क्या सपना आता कि वो देर तक सोने की आदी है। पहले दिन से ही वो साड़ी, सिन्दुर, बिछिया वगैरह पहनती आई थी। मैं क्यों कहती की ना पहन, मुझे कैसे मालूम चलता कि उसे ये सब नहीं पसंद। कहती है की बेटी पसंद थी पर बेटे के लिए मन्नत मांगी, क्यों, क्या मैंने कहा था? बड़ा बेटा अपने परिवार के साथ बम्बई जाना चाहता था, ना जाने का फैसला तो इसका खुद का था, मैंने कब मना किया था? 'ताना', वो कहती है कि मैंने ताना मारा। रोज सुबह उठकर पूजा पाठ करने वाली लड़की अगर देर से उठे, उदास दिखे तो परिवार के सदस्य क्या कहेंगे, यही ना कि 'लगता है आज तबियत ठीक नहीं', क्या ये कहना ताना हो जाता है। 
मेरी दूसरी बहू भी तो है, आठ बजे उठती है, मुन्नी के होने से पहले जॉब भी करती थी, चूड़ी बिंदी बिछिया नहीं पहनती। मैंने तो उससे भी कभी कुछ नहीं कहा। ये बात तो खुद ऋतू ने ही आपको बताई। 'मुन्नी को सब प्यार करते हैं' भी उसने ही बताया। 
क्या चाहती है वो कि मैं प्रज्ञा को कोसू कि तूने बेटी क्यों पैदा की, जॉब क्यों करती है, देर से क्यों उठती है, व्रत वगैरह क्यों नहीं करती। हां, शायद वो यहीं चाहती है, क्योंकि वो 'आदर्श बहु' है तो मैं भी टिपिकल सास बन जाऊ। 
क्या आपको नहीं लगता कि बचपन से ही शायद देख सुन कर उसने धारणा बना ली, चश्मा पहन लिया, कि ससुराल और सास कैसी होती है, वहाँ आपको बदलना पड़ता है। ऋतू ने भी ये चश्मा पहना था, अपने आप को बदल लिया और अब कुंठित है। इसी चश्मे को ही तो पूर्वाग्रह कहते है ना।


खुद की ही बनाई अवधारणा में कैद मेरी बहू मुझे दोष देती है।


आप बताइए कि इसमें मेरी क्या गलती.......

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6 जुलाई 2016

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