शहर बनारस देखा जाए तो 1 तरह से पूर्वांचल का बम्बई है, सारे पूर्वांचल और बिहार से ना जाने कितने लोग रोज ही बनारस प्रवास करते हैं। रोजी रोटी कमाने के लिए आने वालों के अलावा भी काफी लोग अपने परिजनों के बेहतर इलाज के लिए बनारस आते हैं। बीएचयू जिसे स्थानीय लोग बेचू कहते हैं, जैसा बड़ा अस्पताल तो है ही, कुछ बड़े प्राइवेट अस्पताल भी हैं जिनका काफी नाम है, इसके अलावा भी सैकड़ों की संख्या में प्राइवेट क्लीनिक है। शहर के बीचोबीच शुक्ला हॉस्पिटल में मेरे पिता का इलाज चल रहा था, कोमा में थे, आईसीयू में। शुक्ला हॉस्पिटल के मालिक स्वयं डॉक्टर हैं, गणमान्य व्यक्तियों में शुमार किये जाते हैं। माफियाराज तो खैर पूरे देश में ही है, अपहरण टाइप क्राइम बनारस में भी है। सुनते हैं कि एक बार डॉ. शुक्ल पर भी अपहरण अटेम्प्ट हो चुका था, रंगदारी देते ही होंगे। अमीरों की जान पर भी सौ अलामते होती हैं साहब। इसलिए मजबूरी में दो बॉडीगॉर्ड लेकर चलते, एक सरकारी एक निजी। वैसे होने को ये भी हो सकता है कि खुद ही अफवाह उड़ाई हो, सम्पन्नता दिखाने के लिए बॉडीगॉर्ड भी बहुत जरुरी जो हैं आजकल।
भगवान ना करे कि आपको कभी भी हॉस्पिटल या आईसीयू का मुँह देखना हो। आईसीयू में जिंदगी बहुत धीमी रफ़्तार से चलती है, लोग अपने अपने मरीजों के साथ चुपचाप बैठे रहते हैं उनका हाथ थामे, कहीं अंदर वो जानते हैं कि साथ छूटने वाला हैं पर मानव मन उम्मीद नहीं छोड़ता। भर्ती के दूसरे दिन जब मेरे होश हवाश थोड़े ठिकाने आए तो आस पास भी नजर दौड़ाई। चार बेड के कमरे में दूसरी छोर पर एक 12 साल का लड़का जलते बुझते डब्बों से घिरा लेटा हुआ था और साथ लगी टेबल पर मेरी ही उम्र का एक लड़का उस बेहोश बच्चे से ना जाने क्या बातें किये जा रहा था। कुछ देर बाद उसकी नजर मुझपर पड़ी, एक जैसे ही थे हमारे हाल, उठकर उसके पास गया, पूछा उसके मरीज के बारे में। उसने बताया की उसका एकलौता भाई, एकलौता जीवित सगा है ये लड़का। माँ बहुत पहले मर चुकी थी और बाप पिछले साल ही खत्म हुआ था। यहीं दो भाई बचे हैं, गांव के बटवारे में जो जमीन मिली वो अधिया पर छोड़ बनारस किसी दुकान पर काम करता है। आज 21 दिन से हॉस्पिटल में है। 21 दिन! 21 दिन आईसीयू में! और मेरी हालत आज दूसरे दिन ही ख़राब हो चली थी। असली बीमारी जिस लिए वो भर्ती हुआ था वो तो मुझे याद नहीं रहा पर अब उस बच्चे की पीठ कमर और नीचे के हिस्से में लगातार लेटे रहने से बेडसोर हो गया था। मिसरा जी कंपाउंडर अभी कुछ दिन पहले ही ड्यूटी पर लौटे थे, वो बहुत ख्याल रखते, जो बन पड़ता वो करते। थोड़ी देर बाद वापस अपनी टेबल पर आ गया, और वो बड़ा भाई फिर से अपने छोटे बेहोश भाई से बात करने लगा।
अगली सुबह सामने गोपला की दुकान से चाय पीकर जब वापस अस्पताल लौटा तो नीचे लॉबी में ही काली गाड़ी के पास वो लड़का मिल गया, उसका छोटा भाई अब भी लेटा हुआ था, बस अंतर इतना कि बेड की जगह अर्थी टाइप कोई चीज थी। उस लड़के की नजर मुझसे मिली, मैं स्तब्ध था और अचानक उसके होंठों पर एक ना समझ आने वाली हँसी तैर गई। मुझमें उसे और देखने की ताब नहीं थी, वापस उस चार बेड के कमरे में आ गया।
मिसरा जी अपनी ड्यूटी टाइम पर आये। पता नहीं क्यों तीनों कम्पाउंडरों में से मुझे मिसरा जी बहुत भले लगते, हल्का निकला पेट और रजनीगंधा भरा मुँह। औरों के चेहरे पर जहां कृत्रिम या पेशेगत गंभीरता दिखती, वो हमेशा मुस्कुराते रहते। जौनपुर के थे पर ठेठ बनारसी लगते। बोलते, का गुरु, इतना काहे टेंसन ले रहे हो। आओ चलो चाय लड़ाया जाए। मस्त आदमी, गजब गपोड़ी।
अगली शाम कोई बीसेक साल की लड़की भर्ती हुई, बगल वाले बेड पर, पूरा ससुराल ही आया था। नाजुक हालत थी लड़की थी, खून के पाउच चढ़ रहे थे। धीरे धीरे उसके परिवार के लोग कम होते गए, अगले पांच घंटों में कोई नहीं रहा। रात दो बजे वो लड़की कांपने सी लगी, कहीं हाथों से सुइयां ना निकल जाए, मैंने उसके दोनों हाथ कस के पकड़ लिए। उस समय मेरे अलावा कोई था ही नहीं वहां। थोड़ी देर बाद लड़की शांत हो गई। शायद मर ही गई। सुबह चार बजे उस लड़की को वहां से हटा दिया गया।
मन खिन्न हो गया, चाय पीने बाहर गोपला की दुकान पर आया, मिसरा जी बैठे दिखे, चुप, उन्हें यूँ चुप देखना ताज्जुब की बात थी। दुआ सलाम की तो मेरी तरफ देखा, मुझे उनकी आँखों में पानी सा दिखा, मूछें शायद आंसुओं से गीली हो गई थी, देखा और उठ कर चल दिए। बाद में गोपला ने बताया की अइसही बउरा जाते हैं हफ्ता दस दिन में।
कंपाउंडर केबिन में जा कर मिला उनसे, मुझ पर भड़क गए, बुजरो के, तुमको यहीं हॉस्पिटल मिला रहा अपने बाउजी के इलाज के लिए। साले इहा डाक्टर नहीं व्यापारी इलाज करते हैं। ई सुसीला का पूरा इलाज नाही किये सब, पइसा कम पड़ रहा था और परसो उ मुन्ना, तुम्हे का लगता है बिमारी से मरा, उ बिमारी को लापरवाही कहते है। होते थे कभी डॉक्टर भगवान, हमें तो ससुर यहां इंसान भी नाहीं दिखते। जाओ इहां से, बीएचयू या पीजीआई ले जाओ उन्हें, दफा हो जाओ इहां से।
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क्या सच में, 'भगवानों' की जगह 'व्यापारी' ही इलाज का जिम्मा संभाले हैं?
सुना कल डॉक्टर्स डे था..... Happy Doctor's Day
2 जुलाई 16
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