मेरे मामा अलमस्त फक्कड़ आदमी, उपन्यास और शराब कबाब के शौक़ीन। जमींदार टाइप पिताओं के बेटे शायद ऐसे ही होते हैं। कहते हैं कि लगातार निकालने से तो कुबेर का खजाना भी खाली हो जाय सो अमीरी से गरीबी की ओर बढ़ रहे थे सब। लड़के को जिम्मेदारी का एहसास दिलाने के लिए फटाफट शादी कर दी जाती है हमारे गावों में, उनकी भी हो गई। जिम्मेदारी तो गई तेल लेने पर पहले मर्दानगी भी तो साबित करनी होती है तो 2 बार 'लक्ष्मी' के पिता भी बन गए। लोग कहते तो हैं की लक्ष्मी हुई है पर गौर से उनके चेहरे देखे तो उनकी ख़ुशी में मिलावट साफ़ दिखती है।
अब 1 परिवार में 2 लक्ष्मियां काफी है, अब तो कुलदीपक का इंतिजार था। पूरे परगना के सभी देवताओं बाबाओं के आशीर्वाद से इस बार लक्ष्मी जी रूठ गई और कुलदीपक जी पधारे। शायद पहली बार गाना वाला हुआ होगा। बड़ा प्यारा बालक था। उसकी अपनी माता के साथ साथ सभी माताएं उसे प्यार करती थी, फिर 'छोटी माता' का भी प्यार मिला उसे।
बनारस में अचानक मामा अपने बेटे को लेकर आये, 4 साल का था उस समय। बोले थोड़ी तबियत खराब है इसकी, आँख में सफ़ेद दाग हो गया है। आई स्पेशलिस्ट के पास ले गया अपनी बाइक पे बैठा के, दिन के 12 बजे नंबर आया। डाक साब ने पूरा परीक्षण करने के बाद पिता पुत्र को तो भेजा बाहर और मुझ पर बरस पड़े। पढ़ा लिखा दिखा शायद इसलिए, बोले चिकेनपॉक्स है लड़के को, और अब आँखों तक में फैल गया है, तुम पढ़े लिखे लोग भी ना, जाहिल ही मरोगे। बाहर आकर मामा से पूछा तो बताया कि हां माता आई थी, पर चली जाएंगी, इतना क्या परेशान होना। अब क्या समझाता, बगल के बाल रोग विशेषज्ञ के पास ले गया, उन्होंने भी पहले हड़काया फिर इलाज करने से मना कर दिया। ये दोनों डॉक्टर पूर्वपरिचित थे, इसलिए डाँटना उनका हक़ था। फिर तीसरे डॉक्टर के पास ले गया....फिर चौथे ..... ..... फिर 12वे ....फिर....। अब तक मामा को भी समझ आ गया था कि मामला गंभीर है। बनारस वाले मित्र जानते हैं कि पाण्डेपुर से यूपी कॉलेज के बीच पचासों डॉक्टर और क्लीनिक हैं। तकरीबन 15 डॉक्टरों को दिखाने और अस्वीकार किये जाने के बाद आखिरकार रात 2 बजे BHU पहुंचे। वहां भी डॉक्टर के क्रिटिकल कंडीशन बताने और बचाने की उम्मीद ना देने पर मामा भड़क गए और अपशब्द भी कह गए। डाक साब भी भड़क गए, उन्हें भी समझना चाहिए था तिल तिल कर मरते बेटे के पिता का दर्द। पर उनकी भी क्या गलती, यथार्थ ही तो बता रहे थे। फिर इंग्लिश में उन्होंने बातें की ताकि मामा को समझ ना आये, 1 विशेषज्ञ का नाम सुझाया। वहां ले गए, उन डॉक्टर साहब ने भी साफ़ कह दिया कि ये बचेगा नहीं, गिड़गिड़ा गया मैं कि साहब आप भर्ती कर लो। जिए मरे पर बाप को ये हौंसला तो हो की इलाज चल रहा है।
और जैसे चमत्कार हुआ, सातवें दिन पहली बार वो लड़का बोला, बुआ अंगूर खाना है। मेरी मम्मी खुश, पापा को फोन किया, पापा ने अजीब बात कही कि तैय्यारी कर लो।
दोपहर तक कुलदीपक बुझ गया।
## अन्धविश्वास ने 1 जान ले ली।##
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शादी के पहले की बात है। सासू माँ बहुत बीमार थी। डॉक्टरों ने जवाब दे दिया था। घर पर ही दिन कट रहे थे। लोग अंतिम बार मिलने को आते। उनकी बेटी (अब मेरी पत्नी) को भगवान पर अटल विश्वास है। पहाड़ के हैं ये लोग। पहाड़ों पर हर गाँव के 1 देवता होते हैं। और गाँव इतनी दूर होते हैं कि जाने का सोचने में ही डर लगे। पता नहीं कोई सपना या कोई अंतःप्रेरणा ने बेटी को बताया कि 1 बार गाँव जा अपने देवता के पास। ये चल पड़ी, 4 किलोमीटर तो गाड़ी का रास्ता फिर 2 पहाड़ चढ़ के उतरने के बाद उनका गावँ। पतली घुमावदार पगडंडी और चीड़ की सूखी पत्तियां। यूपी बिहार के लोग शायद इस यात्रा की कठिनाई को ना समझ पाएं, पर यकीन जानिये, है ये हौंसले की बात। मंदिर पहुँच कर बिना गावँ में रुके वो उसी समय वापस चल दी। लुढ़कते पुढ़कते वापस अपने घर पहुँच ही गई। मंदिर से लाये गए किसी फूल की 1 पंखुड़ी अपनी माँ के सर रख दी।
और जैसे चमत्कार हुआ। आराम तो तुरंत ही मिला, 7 दिन में वो पूरी तरह स्वस्थ भी हो गई।
## विश्वास ने 1 जान बचा ली।##
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इस संस्मरण/कहानी का निष्कर्ष मुझे नहीं पता। क्षमा......
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