Sunday, 17 July 2016

चक्र


पढ़ने का शौक तो शुरू से ही था, बस कोर्स की किताबें छोड़ कर, कोर्स की किताबें पढ़ने में मेरी जन्नतनशीं नानी मरती। जैसे तैसे पीजी पूरी कर नौकरी ढूंढने निकले, चप्पलें घिस गई , नौकरी नहीं मिली। फिर भाग्य से ही अस्थाई अध्यापक की नौकरी लग गई यूनिवर्सिटी में। अच्छी नौकरी थी, हफ़्ते के 16 घंटे की टीचिंग ड्यूटी, अपनी मौज के लिए काफी टाइम बच जाता। हॉस्टल के बाहर लाला की चाय की दुकान पर, तशरीफ़ एक कुर्सी पर, पैर दूसरी कुर्सी पर, एक हाथ में कोई किताब और दूसरे में चाय, पूरा दिन कट जाता। कुछ को बोरिंग लग सकता है पर मेरे लिए तो यहीं दो नशे थे, चाय और किताब।

सेमेस्टर शुरू ही हुआ था, रंग बिरंगे बच्चे दिखते, पूरे भारत से, पर ज्यादातर हिंदी पट्टी के। कोई ड्रेस कोड नहीं था पर नए बच्चे भद्दी काली पैंट सफ़ेद शर्ट में दिखते और लड़कियां सलवार कुर्ते में। पूछने पर मालुम चला कि परंपरा है, जूनियर्स को सीनियर्स पहले सेमेस्टर में ऐसे ही भद्दे कपडे पहनने को कहते हैं। कभी कभी कैंटीन में दिख जाते ये नये नवेले शिकार, और शिकारी, अजीब सवाल पूछते ये सीनियर्स, कुछ सवाल तो परंपरागत होते जैसे इंटर कहां से किया, पटना कहां हैं पर कुछ तो इतने वाहियात और अश्लील होते कि उन्हें यहां लिखने की हिम्मत नहीं मुझमें। गंदे जोक सुनाये जाते, कोई हँस दे तो उसकी 'मुस्की' पुछवाई जाती। मुस्की पोछना मतलब काव्यात्मक ढंग की चुनिंदा गालियों में गोते लगाना। ऐसे देखने में उन बच्चों में कोई फर्क नहीं दिखता, पर कुछ आँखों में अजीब सी चमक और कुछ आँखों में बसी हुई दहशत साफ़ दिख जाती।

एक शाम अजीब नजारा दिखा, एक लड़का 'सिर्फ एक' कपड़े में, सड़क पर तेजी से चलता हुआ आया, रास्ते में जो भी मिलता उसे कोरस गा कर सलाम बोलता फिर आगे बढ़ता। एक दिन और वो लड़का ऐसा ही कुछ करता दिखा, मुझे उसपर दया आती पर मेरी दया का क्या मोल। 

एक शाम टहलते हुए शमशान के आगे से गुजरा, वो लड़का वहां उकड़ू बैठा हुआ दिखा। खाली ही था, जाके उसके पास बैठ गया। कुरेदने पर उसने बताया कि बिहार के किसी जिले का है, नाम मनोहर, मुर्दा जलाने का ही काम करते हैं बाप दादा। यहां शमशान में उसे घर सा अहसास होता है। गरीबी और सामाजिक कठिनाइयों से लड़ लुड़ कर यहां पढ़ने आया बच्चा शमशान में शांति ढूंढ रहा था। बहला फुसला कर ले गया उसे अपने साथ डिनर पे, वापसी में थोड़ी ख़ुशी थोड़ी रौनक दिखी उसके चेहरे पे।

एक दोपहर वो लड़का मेरे रूम पर आया और आते ही जैसे चिपक सा गया मेरे से, इतना रोते मैंने कभी किसी को नहीं देखा था, हिचकियां इतनी ज्यादा और आवाज इतनी तेज, गनीमत थी कि दोपहर का समय था, नहीं तो पूरा हॉस्टल इकठ्ठा हो गया होता। अपने आंसुओं और नाक के पानी से तर कर दी उसने मेरी शर्ट। जैसे तैसे चुप हुआ तो बताया कि कल शाम उसे वो 1 कपड़ा भी नहीं पहनने दिया गया, करीब दो घंटे तक सलामी ली गई फिर नचाया गया उसे आधी रात तक, उसी हाल में।
तमतमा गया था मैं, यदि दो साल पहले ऐसा कुछ सुना होता तो हाथ पैर तोड़ देता, पर अब पद की गरिमा बनाये रखनी थी तो प्रॉपर तरीके से शिकायत वगैरह की गई। तीन सीनियर्स ससपेंड हुए, कुल 5 को हॉस्टल से निकाल दिया गया। 
अब शायद मनोहर ठीक था, पहले रोज ही मिल जाता फिर धीरे धीरे उसने आना छोड़ दिया। मुझे भी स्टॉफ क़्वार्टर मिल गया था दूसरे छोर पर।
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तीन साल बाद मनोहर के बैच को पढ़ाने का मौका मिला। एक डेढ़ हफ्ते तक जब वो दिखा ही नहीं तो उसके साथियों से पूछा, मालुम चला कि रैगिंग लेने के आरोप में उसे ससपेंड कर दिया गया है...





14 जुलाई 16

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