बाबा बड़े मस्त आदमी थे। पापा इंजीनियर थे इसलिए हर मामले में खुद को एक्सपर्ट समझते, खेती हो या किचेन, पुताई हो या पढ़ाई, फिर बाबा तो पापा के भी पापा थे। कोमल आँखे, (सिर्फ बच्चों के लिए आरक्षित), छोटे सफेद बाल, दो चार दिन की उगी दाढ़ी, गोरा रंग, दमदार आवाज। आँखों के अलावा सारा सिस्टम चाक चौबंद। मोटी फ्रेम का चश्मा पहनते, वो भी सिर्फ अखबार पढ़ते समय, अब ये अलग बात थी की पढ़ते वक्त चश्मा नाक की फुनगी पे टिका रहता और उनकी आँखे चश्मे के ऊपर से ही अक्षरों को ग्रहण करती।
आज के हिसाब से तो गरीब ही थे पर उनके हिसाब से गरीबी जैसी कोई बात नहीं थी, जो था उसमें ही खुश, कुछ अलग कुछ नया पा लेने का उनका मन ही नहीं था। वैसे ये बात तो है कि गरीब आदमी अमीर बनकर गरीबी भूल जाता है पर अमीर गरीब हो जाने के बाद भी अपनी दिलदारी छोड़ नहीं पाता। इनके भी बाबा या उनके पिता बड़े जमींदार हुआ करते थे, गदर में बाबू कुँवर सिंह का साथ दिया तो सारी जमींदारी छिन गई, जान बच गई क्योंकि अंग्रेज महिलाओं बच्चों की हिफाजत की थी। ये भी दिलदार आदमी थे, कोई मदद मांग ले तो उसकी तो सहायता करते ही, उन लोगों की भी कर देते जिन्हें कुछ मांगने में कष्ट होता। कई बार बेवकूफ भी बने पर ये आदत छोड़ ना सके। अच्छी खासी नौकरी थी कटनी में, बड़े भाई की आज्ञा हुई कि खेती देखो, मैं नौकरी करूँगा तो गांव के ही होकर रह गए। बीस बाइस साल प्रधान भी रहे।
अलमस्त फकीर टाइप इंसान थे, सुबह अजान से पहले उठ जाते, ठण्ड के मौसम में आग जला देते, सामने खेतों से आलू निकाल आग में डाल देते, फिर सारे घर को उठाते, जिसका खेत होता वो दिख जाए तो उसे भी बुलाकर नाश्ते में आलू परोसते, कहते खाओ यार, शर्माओ मत, तुम्हारे ही खेत के हैं।
पूरा गांव उन्हें कनहरे बाबा कहता, उनका तकियाकलाम था कनहरे, का नाम ह रे का शार्ट फॉर्म। एक बार कनहरे बाबा खेतों पर गए, थोड़ा काम किया फिर खैनी बनाने लगे, खैनी खाने के बाद देखा तो फावड़ा गायब, बड़े परेशान, फिर गुस्सा। दूर खेतों में कोई दिखा, उसे बुलाकर पुछा, उसे क्या पता। रौद्र रूप धारण कर गांव आये और एक सुर में पूरे गांव को गरियाना चालू, सारे चोर हो गए हैं गांव में। भीड़ लग गई, उनमें से एक बहादुर आगे बढ़ा और बोला, का बबा, तोहरे कन्धा पर त हव फरसा। बड़े इत्मीनान से उसे पास बुलाया और एक जोरदार थप्पड़ जड़ के बोले, सूअर का बच्चा, पहले नहीं बोल सकता था। ये अलग बात है कि शाम को उस सूअर के बच्चे को खस्सी की दावत कराई। आज तक मुझे समझ नहीं आया कि गुस्से में लोग कैसे भोजपुरी से खड़ी हिंदी में स्विच कर जाते हैं।
पड़ोस के गांव में किसी ने प्रेम विवाह किया, पंचायत जात बाहर कर रही थी, ये अड़ गए, बोले अगर ये जात बाहर हुआ तो इसके साथ मैं भी होऊंगा। रोटी पानी के लिए जो भी बुलाता पहुँच जाते, किसी को भी अपनी थाली में खाने बैठा लेते।
बनारस आते तो सारे भाई उनसे कहानियां सुनते। वो एक ही कहानी सुनाते, दुष्यन्त शकुंतला की। हम भी टेल्सपिन और मोगली से ज्यादा इस कहानी को ही तरजीह देते। साहित्य से पहला परिचय उन्होंने ही कराया, हालाँकि उन्हें इंग्लिश पढ़ना ज्यादा आसान लगता।
एक शाम पापा का फोन आया बड़े भैय्या के लिए, गांव चले जाओ, अगले दिन कोई तारीख थी शायद कोर्ट में। भैय्या मुझे भी साथ ले गए। गांव पहुँचे तो देखा बाबा नहर पर खड़े मेरे चचेरे भाइयों को पुकार रहे थे, गाय गोरु के लहना पानी का समय हो रहा था। शाम को साथ खाना खा कर सोए। अगली सुबह अजान हो गई, धूप कमरे में आ गई पर बाबा की आवाज नहीं आई। भैय्या उठे और दूसरे कमरे में उन्हें देखने गए, फिर दौड़ते हुए मेरे पास आये, बोले देखो तो बाबा नीचे लेटे हुए है। देखा तो वो उत्तर दक्खिन आराम से पीठ के बल चिरनिद्रा में थे। भैय्या रो रहे थे और मैं, शायद पहली बार मेरी आँखों से 1 आँसू भी ना निकला।
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आज सुबह सुबह एक नए बने युवा फेसबुक मित्र ने गुरु पूर्णिमा की बधाई देते हुए मेरे गुरु के बारे में पूछा। बहुत सारे मानव रत्नों को अपना गुरु मानता हूँ पर अगर किसी एक का नाम लेना ही हो तो अपने कनहरे बाबा का नाम सबसे ऊपर रहेगा, हमेशा।
अजीत
19 जुलाई 16
19 जुलाई 16
लाजवाब भैया
ReplyDeleteधन्यवाद भाई
Deleteलाजवाब भैया
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