Wednesday, 22 February 2017

मैं और तू, हम


शिवराज बाबू ने जब से ये खबर सुनी है, उनके कंधे झुक से गए हैं। शाम की ठंड बढ़ चली है पर उन्हें आग में सागौन के सूखे पत्ते डालने का होश नहीं। बुझ चुकी राख में उन्हें अपने बचपन से लेकर जवानी तक की यादें एक के बाद दिख रही हैं। ना जाने किस उम्र में उनकी दोस्ती मियांपट्टी के कमालू से हो गई थी। अली बे ते सीखते समय, उस्ताद जी की मार खाते समय, पटिया के लिए खड़िया घोलते समय पता नहीं कब कमालू उन का साथी बन गया। शोख शरारतें, भोर में खरहा पकड़ने की दौड़, तीतर का शिकार, गंगा में की गई अठखेलियां, तालाब से मछली मारना, बड़े हुए तो पहलवानी का अखाड़ा, ऐसी कोई जगह नहीं थी जहां कमालू साथ ना हो। एक जैसी पगड़ी और लुंगी, कई बार तो घर वाले ही पीछे से पहचान नहीं पाते कि शिवा है कि कमालू।

घड़रोज नीलगाय का शिकार हो या चँदवा गांव की लड़ाई, दोनों की बंदूकें और लाठियां एक साथ उठती थी। और आज उसी कमालू के नवासे ने चंदन का माथा फोड़ दिया। बेटा बहू तो गंगा मैया की भेंट चढ़ गए, बस एक चंदन ही तो बचा रह गया है उनके पास। कमालू की बेवा बेटी जिस बरस अपने दुधमुँहे जमाल को लेकर गांव आई थी हमेशा हमेशा के लिए, उसी बरस चंदन हुआ था। कमालू अपना दुख भूल कितना खुश हुआ था कि ऊपर वाले ने दो दो बच्चे बख्शे उसे।

इन दोनों बच्चों में दोनों बूढों ने अपना बचपन देखना चाहा था, पर ना जाने क्या बात थी कि चंदन और जमाल कभी दोस्त नहीं बन पाए। सीधे साधे खेल में भी पता नहीं कैसे झगड़ा खोज ही लेते दोनों।

जब कमालू बिस्तर पर जा पड़ा तो शिवा कई कई घण्टे उसका हाथ थामें पैताने बैठे रहते। अपना अंतिम बखत जानकर उसने कहा था कि यार मैं तो चला, मेरे जमाल का ध्यान रखना। मिट्टी डालते समय शिवा का अपना ही एक हिस्सा जैसे मर गया था।

और आज, आज वॉलीबॉल के छोटे से झगड़े में लड़ पड़े दोनों, गबरू जवान हो गए हैं पर बचपना गया नहीं अब तक, या बचपन की ही अनजानी तकरार आज जवानी के बल पर फूट पड़ना चाहती थी। बताते हैं कि खेत से लौट रहे रमेसरा का फरुसा छीन कर चला दिया था उसने, वो तो बाकियों के दखल से निशाना गलत बैठ गया नहीं तो भगवान जाने क्या हुआ होता। ऊपरी चोट है, ठीक हो जायेगी। सब कह रहे थे कि केस कर दो, पर कमालू के नवासे को शिवा खुद ही जेल भिजवाए, राम राम।
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शिवराज बाबू खाना पीना निपटा कर सोने की तैयारी कर रहे हैं कि उन्हें सामने अंधेरे में कोई साया सा नजर आता है। कड़क कर उसका परिचय पूछते हैं तो बाबा पालगी की आवाज सुनाई देती है और वो साया आगे बढ़कर उनके पैरों में गिर जाता है। अरे ये तो जमाल है, 12 दिन से गायब था और आज अचानक ऐसे?
"बाबा, गलती हो गई बाबा, तुम तो जानते हो कि गुस्सा संभाल नहीं पाता, मेरा उसे सच में ही मारने का इरादा नहीं था, वो तो बस, अब क्या कहूँ, चैन से नहीं रहा हूँ इतने दिन, बस तुम माफ़ कर दो बाबा, मैं कल ही जेल चला जाऊंगा। नानू की लाल आंखें दिखती हैं आँख बंद करते ही, तुम माफ़ कर दोगे तो मेरा नाना भी मुझे माफ़ कर देगा।"
शिवराज बाबू की उँगलियाँ उसके बालों में फिर रही हैं, उन उँगलियों को महसूस कर वो रोये जा रहा है। माफ़ कर दिया, मियांपट्टी तक छोड़ आए उसे। वापसी में सोचते हुए चले आ रहे हैं कि काश चंदन भी ये सब भूल जाए।
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महीनों हो गए इस बात को, जिंदगी वैसी ही चल रही है, बस अब चंदन उधर नहीं जाता, जमाल इधर नहीं आता। शिवा बाबा कंबल ओढ़ कर बैठे हैं और चंदन घर में ही छोटी सी जगह पर छोटे छोटे पौधे लगा रहा है। बाबा उसे कुछ ना कुछ हिदायत दिए जा रहे हैं। ये बुजुर्ग लोग भी ना, अरे बैठे रहो ना चुपचाप, हुक्का पियो, धुँआ निकालो, शांति से करने दो काम।

अचानक गांव में शोर सा सुनाई देता है। रमेसरा ने आकर बताया कि चँदवा गांव में मैच के दौरान झड़प हो गई, जमाल बुरी तरह जख्मी है। शिवराज बाबा धम्म से खटिया पर गिर गए, आँखों के आगे अँधेरा छा रहा है। काश कि वो जवान होते तो इन चँदवा वालों को दिखा देते। तभी सामने से चंदन जाते हुए दिखता है, हाथ में तेल पिलाई हुई लाठी है, और उसने गांव को ललकार कर नेतृत्व अपने हाथ में ले लिया है।

बाबा की आँखें चमक गई हैं।
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अजीत
23 फरवरी 17

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