पुत्र-कामना सर्वाधिक वांछित कामनाओं में से एक होती है, ना जाने क्यों। ये जो पुत्र-कामना है न, इसी ने सबसे ज्यादा बेड़ा गर्क किया हुआ है, महिला-पुरुष विभेद का सबसे बड़ा कारण, और महान आश्चर्य ये कि अधिकतर महिलाएं ही मनौती मांगती रहती है पुत्र की।
मीना जायसवाल की गिनती शहर के टॉप अमीरों में होती थी। पिता की एकमात्र सन्तान, थोड़ी गर्विष्ठ, दबंग हो ही जाती है, ये भी थी। पिता अपने समय में ही कहने को 'कन्यादान' कर चुके थे, वास्तव में जमाई खरीद लाये थे। समय के साथ मीना जी का परिवार पुष्पित पल्लवित होता गया, बेला गुलाब जूही जैसी तीन सुन्दर कन्याओं की माता बन गई। पर एक पुत्र ना हुआ, कोशिशें पुत्र पाने के लिए होती, ना होने पर 'गिरा' दी जाती, अब तीन तो पहले से थी न, और क्या चाहिए थी।
अंतिम कोशिश के परिणाम की असफलता को 'मिटाने' के चक्कर में कुछ गड़बड़ हो गई थी शायद, जिससे अन्य कोशिशें करनी मुमकिन ना रही।
इंसान का स्वभाव बड़ा अजीब सा होता है, अप्राप्य के लिए जिद बैठ जाती है, येन केन जो चाहिए वो चाहिए, मीना उन्हीं व्यक्तियों में से थी। खुद का पुत्र नहीं हुआ तो पुत्र गोद भी तो लिया जा सकता है। बड़ी खोजबीन के बाद अपनी ही बिरादरी से एक दरिद्र के नवजात लड़के को विधिवत कानूनी रूप से गोद ले लिया।
मीना की सारी कठोरता इस बच्चे ने हर ली, अपने मुलाजिमों, बेटियों और पति पर भी सख्त रुख रखने वाली मीना इस बच्चे शशिकांत के सामने पानी हो जाती। शशि सुन्दर तो था ही, जैसे-जैसे बड़ा होता गया उसके सद्गुण भी दिखने लगे। नौकरों से भी अदब से बात करने वाले, पढ़ाई में अपने गुरुओं के भी कान काटने वाले बालक शशि ने बालिग होते ही कारोबार में माँ का हाथ थाम लिया। जैसे विश्वकर्मा का आशीर्वाद मिला हो, शशि के सानिध्य में कारोबार खूब चमका।
अपनी बड़ी बहनों की शादी भी एकतरह से शशि ने ही कराई। माँ की इच्छानुसार ऐसे सुन्दर, गुणी, कारोबार में दक्ष लड़के चुने जो जरूरत होने पर घर-जमाई बनने में संकोच ना करें।
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काल से कौन बचा है, मीना जी को गुजरे आज महीना हो चला है। शशि ने ये दिन आँखों में बिता दिए। सारे काम निपट चुके हैं और आज वकील साहब वसीयत पढ़ने वाले हैं। बेटियां और दामाद निराश हैं कि सबकुछ शशि को ना दे गई हो माँ, शशि सोच रहा है कि कुछ भी हो वो अपनी बहनों और उनके परिवार को अपने से दूर नहीं करेगा। "वसीयत के चंद लफ्ज तेरे शशि से उसकी बहनों को दूर तो नहीं कर सकते ना माँ?"
वसीयत पढ़ी जा रही है, सब प्रसन्न दिख रहे हैं, माँ किसी को भूली नहीं है, सबको कुछ ना कुछ दिया ही है।
वसीयत पढ़ी जा चुकी है, बहनें बहुत खुश हैं, बहुत कुछ उन्हें दे दिया गया है। शायद माँ शशि को भूल गई है...
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अजीत
3 फरवरी 17
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काल से कौन बचा है, मीना जी को गुजरे आज महीना हो चला है। शशि ने ये दिन आँखों में बिता दिए। सारे काम निपट चुके हैं और आज वकील साहब वसीयत पढ़ने वाले हैं। बेटियां और दामाद निराश हैं कि सबकुछ शशि को ना दे गई हो माँ, शशि सोच रहा है कि कुछ भी हो वो अपनी बहनों और उनके परिवार को अपने से दूर नहीं करेगा। "वसीयत के चंद लफ्ज तेरे शशि से उसकी बहनों को दूर तो नहीं कर सकते ना माँ?"
वसीयत पढ़ी जा रही है, सब प्रसन्न दिख रहे हैं, माँ किसी को भूली नहीं है, सबको कुछ ना कुछ दिया ही है।
वसीयत पढ़ी जा चुकी है, बहनें बहुत खुश हैं, बहुत कुछ उन्हें दे दिया गया है। शायद माँ शशि को भूल गई है...
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अजीत
3 फरवरी 17
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