लखनऊ का चारबाग रेलवे स्टेशन रोज ही न जाने कितनी कहानियों के साथ गतिशील बना रहता है। हजारों लोग न जाने कहाँ से आते हैं, और न जाने कहाँ को जाते हैं। इन आने-जाने वालों के अलावा भी सैकड़ों लोग यहीं, रेलवे स्टेशन के प्लेटफॉर्म पर अपना सारा-सारा दिन गुजार देते हैं। यहाँ भीख मांगते और सस्ते नशे से अपनी भूख को दरकिनार करते बच्चे हैं। सस्ते उपायों से पेट भरती महिलाएं हैं जिनके पेशे को हमारा समाज हेय दृष्टि से देखता है। पर इनके अतिरिक्त बहुत कुछ सुंदर भी है।
मैं अक्सर ही यहाँ अपनी ट्रेन के सही समय से घण्टों पहले पहुंच जाता हूँ। और देखता हूँ यहाँ के लोगों को। यात्रियों को और उन्हें भी जिन्हें कहीं नहीं जाना। मुझे यायावर पसन्द हैं पर दिलचस्पी ठहरे हुए लोगों में है।
तीन नंबर प्लेटफॉर्म की सीढ़ियों से उतरते ही शेड को आधार देने वाले खंभे को सीमेंटेड कर दिया गया है। इस पर चार लोग, चार तरफ मुँह कर अपनी तशरीफ़ टिका कर बैठ सकते हैं। मुझे भी यहीं बैठना पसन्द है। चाय का स्टॉल नजदीक ही है, किताब हाथ में होती है, समय कट जाता है। हालांकि स्टेशन पर बैठकर इंसानों को पढ़ना किताब पढ़ने से अधिक अच्छा लगता है।
मेरी बगल में कोई रिटायर्ड सज्जन बैठे हैं। माथे पर लगा चंदन उन्हें तमिल बता रहा है। वे किसी किताब में देख कर एक कॉपी में पेंसिल से कुछ लिख रहे हैं। स्टेशनों पर अमूमन ऐसे दृश्य नहीं दिखते। उचक कर उनकी किताब देखी तो पाया कि यह यूपी बोर्ड की मैथ्स की किताब है। सर त्रिकोणमिति हल कर रहे हैं। लोगों के कैसे कैसे शौक होते हैं!
मैथ्स देखकर मेरी दिलचस्पी खत्म हो गई और नजरें सामने चार नंबर प्लेटफॉर्म की बेंच पर बैठे एक जोड़े पर पड़ी। बाइस-तेईस साल के होंगे। बेंच पर थोड़ा तिरछा होकर बैठे हैं ताकि एक दूसरे की आँखों में देख कर बात कर सकें।लड़की के पैरों के पास एक छोटा सा बैग है और लड़के के पास एक हेलमेट पड़ा है। शायद लड़की को विदा करने आया है लड़का।
वे दोनों चुप बैठे हैं। बहुत देर से उन्हें देख रहा हूँ कि वे बस एक दूसरे को देखे जा रहे हैं। बीच-बीच में जब लड़की अपना सर झुका लेती है तो लड़का इधर-उधर नजर दौड़ाता है कि कहीं उसका या उन दोनों के जान-पहचान का कोई उन्हें देख तो नहीं रहा। एक बार तो मुझे लगा जैसे लड़के ने चेहरे के पसीने को पोछने के बहाने एक कन्धे को थोड़ा उचका कर अपनी आँखें पोंछ ली हैं।
लड़की के चेहरे पर दुख साफ दिखाई देता है पर कमाल यह है कि वो रह-रह कर बनावटी मुस्कान बिखेर देती है, जैसे लड़के को सांत्वना दे रही हो। लड़का बस लग रहा है कि रो ही देगा, और आँसुओं को रोकने के प्रयास में लगातार थूक निगलता जा रहा है।
लड़की ने अपनी कलाई घड़ी देखी और अचानक ही उठ खड़ी हुई। लड़का सर झुकाए बैठा रहा जैसे उसके इतनी जल्दी जाने का विरोध कर रहा हो। लड़की फिर बैठ गई। थोड़ी देर बाद सर को थोड़ा टेढ़ा कर इशारा सा किया, जैसे विनती कर रही हो कि अब मुझे जाने दो। लड़का उसकी तरफ थोड़ा खिसक आया। लगा कि उसके माथे पर चुम्बन करना चाहता है। लड़की ने भी खुद को उसकी तरफ थोड़ा झुका दिया है। पर दोनों ही चाहते हुए भी ऐसा कर नहीं पाए। उन्हें देखकर लगता है कि उन्हें एक दूसरे के गले लग कर खूब रो लेना चाहिए। वे ऐसा कर नहीं पा रहे, इसका अफसोस उनके साथ-साथ मुझे भी हो रहा है।
उनके हाव-भाव बता रहे हैं कि यह उनकी अंतिम मुलाकात है। शायद वे साथ पढ़ते हों, लड़का लोकल और लड़की किसी और शहर की। पढ़ाई खत्म हो गई या शायद लड़की की शादी तय हो गई हो। पारिवारिक मूल्य या सामाजिक मजबूरी ऐसी अनगिनत प्रेम-कहानियों का ऐसा ही अधूरा अंत करते हैं।
लड़की ने अपनी भंगिमाओं से फिर से जाने की अनुमति सी मांगी। लड़का अपने हेलमेट को उठा कर उन दोनों के बीच ऐसे रखता है कि लड़की का एक हाथ ढंक जाए। फिर उसने आहिस्ते से उस छुपे हुए हाथ को कुछ सेकेंड्स के लिए छुआ और अचानक ही उठकर लड़की को वहीं बैठा हुआ छोड़ कर झटके से चल पड़ा। लड़की उसे जाते हुए देखती रही। उसके कंधे हौले-हौले हिल रहे हैं और उसने अपने दोनों हाथों से अपने पेट को दबा रखा है। रुलाई रोकने के भी कितने तरीके हो सकते हैं न?
काफी आगे निकल कर लड़का पीछे मुड़ा। लड़की को देखा और थोड़ा सा झुक कर अपने हाथों की दो उंगलियों से सैल्यूट सा किया और फिर मुड़कर चलता चला गया। शायद वो पहले ऐसा करता रहा हो, इस तरह से सैल्यूट करना उसकी खास आदत हो। लड़की जो अभी तक अपनी रुलाई रोकने की भरसक कोशिश कर रही थी, उसके मुँह से जैसे अचानक से आह निकली हो और फिर उसकी आँखों से दबे हुए आँसू बेरोक-टोकबह चले।
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अजीत
6 जुलाई 18
मैं अक्सर ही यहाँ अपनी ट्रेन के सही समय से घण्टों पहले पहुंच जाता हूँ। और देखता हूँ यहाँ के लोगों को। यात्रियों को और उन्हें भी जिन्हें कहीं नहीं जाना। मुझे यायावर पसन्द हैं पर दिलचस्पी ठहरे हुए लोगों में है।
तीन नंबर प्लेटफॉर्म की सीढ़ियों से उतरते ही शेड को आधार देने वाले खंभे को सीमेंटेड कर दिया गया है। इस पर चार लोग, चार तरफ मुँह कर अपनी तशरीफ़ टिका कर बैठ सकते हैं। मुझे भी यहीं बैठना पसन्द है। चाय का स्टॉल नजदीक ही है, किताब हाथ में होती है, समय कट जाता है। हालांकि स्टेशन पर बैठकर इंसानों को पढ़ना किताब पढ़ने से अधिक अच्छा लगता है।
मेरी बगल में कोई रिटायर्ड सज्जन बैठे हैं। माथे पर लगा चंदन उन्हें तमिल बता रहा है। वे किसी किताब में देख कर एक कॉपी में पेंसिल से कुछ लिख रहे हैं। स्टेशनों पर अमूमन ऐसे दृश्य नहीं दिखते। उचक कर उनकी किताब देखी तो पाया कि यह यूपी बोर्ड की मैथ्स की किताब है। सर त्रिकोणमिति हल कर रहे हैं। लोगों के कैसे कैसे शौक होते हैं!
मैथ्स देखकर मेरी दिलचस्पी खत्म हो गई और नजरें सामने चार नंबर प्लेटफॉर्म की बेंच पर बैठे एक जोड़े पर पड़ी। बाइस-तेईस साल के होंगे। बेंच पर थोड़ा तिरछा होकर बैठे हैं ताकि एक दूसरे की आँखों में देख कर बात कर सकें।लड़की के पैरों के पास एक छोटा सा बैग है और लड़के के पास एक हेलमेट पड़ा है। शायद लड़की को विदा करने आया है लड़का।
वे दोनों चुप बैठे हैं। बहुत देर से उन्हें देख रहा हूँ कि वे बस एक दूसरे को देखे जा रहे हैं। बीच-बीच में जब लड़की अपना सर झुका लेती है तो लड़का इधर-उधर नजर दौड़ाता है कि कहीं उसका या उन दोनों के जान-पहचान का कोई उन्हें देख तो नहीं रहा। एक बार तो मुझे लगा जैसे लड़के ने चेहरे के पसीने को पोछने के बहाने एक कन्धे को थोड़ा उचका कर अपनी आँखें पोंछ ली हैं।
लड़की के चेहरे पर दुख साफ दिखाई देता है पर कमाल यह है कि वो रह-रह कर बनावटी मुस्कान बिखेर देती है, जैसे लड़के को सांत्वना दे रही हो। लड़का बस लग रहा है कि रो ही देगा, और आँसुओं को रोकने के प्रयास में लगातार थूक निगलता जा रहा है।
लड़की ने अपनी कलाई घड़ी देखी और अचानक ही उठ खड़ी हुई। लड़का सर झुकाए बैठा रहा जैसे उसके इतनी जल्दी जाने का विरोध कर रहा हो। लड़की फिर बैठ गई। थोड़ी देर बाद सर को थोड़ा टेढ़ा कर इशारा सा किया, जैसे विनती कर रही हो कि अब मुझे जाने दो। लड़का उसकी तरफ थोड़ा खिसक आया। लगा कि उसके माथे पर चुम्बन करना चाहता है। लड़की ने भी खुद को उसकी तरफ थोड़ा झुका दिया है। पर दोनों ही चाहते हुए भी ऐसा कर नहीं पाए। उन्हें देखकर लगता है कि उन्हें एक दूसरे के गले लग कर खूब रो लेना चाहिए। वे ऐसा कर नहीं पा रहे, इसका अफसोस उनके साथ-साथ मुझे भी हो रहा है।
उनके हाव-भाव बता रहे हैं कि यह उनकी अंतिम मुलाकात है। शायद वे साथ पढ़ते हों, लड़का लोकल और लड़की किसी और शहर की। पढ़ाई खत्म हो गई या शायद लड़की की शादी तय हो गई हो। पारिवारिक मूल्य या सामाजिक मजबूरी ऐसी अनगिनत प्रेम-कहानियों का ऐसा ही अधूरा अंत करते हैं।
लड़की ने अपनी भंगिमाओं से फिर से जाने की अनुमति सी मांगी। लड़का अपने हेलमेट को उठा कर उन दोनों के बीच ऐसे रखता है कि लड़की का एक हाथ ढंक जाए। फिर उसने आहिस्ते से उस छुपे हुए हाथ को कुछ सेकेंड्स के लिए छुआ और अचानक ही उठकर लड़की को वहीं बैठा हुआ छोड़ कर झटके से चल पड़ा। लड़की उसे जाते हुए देखती रही। उसके कंधे हौले-हौले हिल रहे हैं और उसने अपने दोनों हाथों से अपने पेट को दबा रखा है। रुलाई रोकने के भी कितने तरीके हो सकते हैं न?
काफी आगे निकल कर लड़का पीछे मुड़ा। लड़की को देखा और थोड़ा सा झुक कर अपने हाथों की दो उंगलियों से सैल्यूट सा किया और फिर मुड़कर चलता चला गया। शायद वो पहले ऐसा करता रहा हो, इस तरह से सैल्यूट करना उसकी खास आदत हो। लड़की जो अभी तक अपनी रुलाई रोकने की भरसक कोशिश कर रही थी, उसके मुँह से जैसे अचानक से आह निकली हो और फिर उसकी आँखों से दबे हुए आँसू बेरोक-टोकबह चले।
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अजीत
6 जुलाई 18
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