Friday, 9 February 2018

आखिर गांधी अफ्रीका गए ही क्यों!



पोरबंदर, नाम में लगा बन्दर मतलब बंदरगाह। बंबई के बनने से पहले यहीं से सिंध, बलुचिस्तान, पूर्वी अफ्रीका और फारस से व्यापार होता था। बम्बई बना तो पोरबंदर को बहुत नुकसान उठाना पड़ा।

पोरबंदर काठियावाड़ के सत्तर रजवाड़ों में से एक था। छोटा इलाका और इतने शासक। कोई 'राजा', कोई 'नवाब', कोई 'राव' तो कोई 'जाम साहेब'। पोरबंदर का राजा 'राणा' कहलाता था।

अंग्रेजों ने इस इलाके को सीधे अपने हाथों में नहीं लिया था। वे तब तक इन राजाओं को राज करने देते थे, जब तक उन्हें बर्दाश्त किया जा सके। राजाओं की सात कैटेगरी होती थी। क्लास वन का राजा अपनी प्रजा का सर्वेसर्वा होता था, किसी अपराधी को सजाए मौत तक दे सकता था। वहीं क्लास सेवन के राजा को 15 दिन की कैद की सजा देने के लिए भी अंग्रेजों की अनुमति लेनी होती थी। बहरहाल, 70000 की आबादी वाले पोरबंदर का 'राणा' श्रेणी वन का राजा था। पहले गांधी 'लालजी' थे जो पोरबंदर राजा की नौकरी में आये और इनकी चौथी पीढ़ी में हुए उत्तमचन्द गांधी उर्फ 'ओटा बापा' जो दीवान बने। दीवान मतलब राजा के बाद सबसे बड़ा अफसर। हालांकि ओटा बापा पढ़ाई में निल बटा सन्नाटा थे।

राणा की मृत्यु हुई, उसका बेटा नाबालिक था तो शक्ति रानी के हाथ में आ गई। रानी ओटा बापा को पसन्द नहीं करती थी तो ये पोरबंदर छोड़ जूनागढ़ चले आये। जब रानी मरी तो नए राणा विक्रमजीत ने उन्हें वापस बुलाया और दीवानी सौंप दी। फिर कुछ दिनों बाद राणा और दीवान में किसी मुद्दे को लेकर अनबन हुई तो राणा ने इन्हें हटाकर इनके बेटे करमचंद उर्फ कबा को दीवान बना दिया।

कबा की पहली दोनों पत्नियां मर गई, उनसे एक-एक बेटी भी हुई थी, वो भी नहीं बची। तीसरी शादी की, कोई बच्चा नहीं हुआ। फिर पत्नी की रजामंदी से उन्होंने अपने से बाइस साल छोटी पुतलीबाई से विवाह किया। उनसे इन्हें बच्चे हुए, लक्ष्मीदास, लड़की रैलियत, करसनदास और फिर हुए मोहनदास करमचंद गांधी।

मोहनदास के पैदा होने के समय राज्य पर विपत्ति आई हुई थी। राजा के बड़े बेटे की उत्तेजक दवाइयों (शराब) के प्रयोग से बड़ी दर्दनाक मौत हुई थी। राजा ने इसके लिए राजकुमार के सेवक लुकमान को दोषी माना, कि उसने ही उन दवाइयों की आपूर्ति की थी। नाक-कान काटकर उसे किले की दीवार से फेंककर मार डाला गया। एक अरब सिपाही को भी मार डाला गया। अंग्रेज इन सजाओं के लिए राणा के तर्कों से सहमत नहीं हुए और इसे सत्ता का गम्भीर दुरुपयोग मानते हुए राजा का दर्जा घटाकर तीन कर दिया।

राजा का दर्जा घट जाने से कबा को तकलीफ हुई और वे राजकोट चले आए। पोरबंदर में 20 सालों का दीवानी का अनुभव काम आया और वे दो साल में राजकोट के दीवान बन गए। मोहनदास की पढ़ाई वहीं शुरू हुई। इनके दोनों बड़े भाई पढ़ाई में डब्बा गोल रहे, ये भी कुछ खास नहीं थे पर फिर भी कइयों से बहुत बेहतर थे।

इनकी शादी हो गई। जब ये 16 साल के थे तो इनके पिता की मृत्यु हो गई (सन 1885)। 1888 में इन्होंने ग्रेजुएशन में दाखिला लिया। उसी समय इनके घर एक आदमी मेहमान बन कर आया जिसने लन्दन जाकर बैरिस्टरी करने की सलाह दी। बीए में 4-5 साल लगना था और बैरिस्टरी ढाई-तीन साल में हो जाती थी। पिता थे नहीं, माता धार्मिक थी जो नहीं चाहती थी कि बेटा विदेश जाए। गांधी ने जिद की तो कुछ वचन देने के बाद इन्हें परमिशन मिल गई। पूरा खानदान विरोध में था पर बड़े भाई लक्ष्मीदास इनके साथ मजबूती से खड़े रहे। उन्होंने आशीर्वाद के साथ पैसों का भरपूर बंदोबस्त किया, इसमें घर के जेवरात भी गिरवी रखने पड़े।

समय बदल गया था, गांधी के बाप-दादा अनपढ़ होते हुए भी दीवान बन पाए थे पर अब राजाओं को पढ़े लिखे नौजवान चाहिए थे। लक्ष्मीदास और करसनदास कुछ खास पढ़ नहीं पाए थे, तो यही सोचा गया कि छोटे को पढ़ा दिया जाए कि यही बन जाए दीवान।

गांधी निकल लिए इंग्लैंड। इधर करसनदास राजकोट रियासत में और लक्ष्मीदास पोरबंदर रियासत में छोटे मोटे नौकर हो गए। इस समय तक पोरबंदर के राणा का दर्जा वापस मिल गया था लेकिन उसे बम्बई में रहना होता था। वह कभी-कभी अपनी रियासत आ तो सकता था लेकिन लगातार रह नहीं सकता था। जो राजकुमार मर गया था उसके बड़े बेटे को राजा बनने की ट्रेनिंग दी जा रही थी। पर उसका मन शिकार, शराब और शबाब में लगता था। शादीशुदा था, बावजूद इसके उसका अपना हरम था। अनाप-शनाप खर्चे। राजा उससे नाउम्मीद हो चुका था और अंग्रेज भी उससे खफा थे।

एक बार राजकुमार अपने दादा मतलब राजा के महल में घुस आया और ताला तोड़कर जवाहरात और महंगे बर्तन उठा ले गया। मुकदमा चला तो उसने कहा कि राजा इन्हें खर्च कर देता इसलिए उसने यह सब अपने कब्जे में कर लिया।

यह सब तो रजवाड़ों में होता ही रहता था। पर दिलचस्प बात यह थी कि उस राजकुमार के मुख्य सलाहकार थे अपने लक्ष्मीदास गांधी। आरोप तो यह भी था कि उस रात राजकुमार के साथ लक्ष्मीदास भी थे। उन्हें पोरबंदर से तड़ीपार की सजा दी गई।

जब मोहनदास गांधी बैरिस्टर बनकर वापस लौटे तो उनके दीवान बनने के चांस खत्म हो चुके थे। विडम्बना ही थी कि जिस भाई ने अपनी सारी जमा-जथा गांधी को दीवान बनते देखने के लिए उनकी पढ़ाई में खर्च कर दी, अब उन्हीं के कर्मों की वजह से गांधी के सारे मौके खत्म हो गए। अपराधी के भाई को दीवान कौन बनाता?

गांधी वहां से बम्बई आ गए, कोर्ट में नामांकन कराया। करीब एक साल तक कमरे से कोर्ट आते-जाते रहे और नाकाम होते रहे। वकालत जमी नहीं बम्बई में तो वापस राजकोट आ गए। वहीं एक ऑफिस बनाया और मसौदे वगैरह तैयार करते। इसमें वे सफल रहे। बढ़िया पैसा कमाने लगे। पर वे थक चुके थे। इतनी उच्च शिक्षा और लेखकीय कौशल बर्बाद हो रहा था यहां। (गांधी उच्चकोटि के लेखक थे।)

एक मौका बना। पोरबंदर का एक मुस्लिम गुजराती दादा अब्दुल्ला नटाल और ट्रांसवाल (साउथ अफ्रीका) में रहता और व्यापार करता था। नटाल खुद देखता और ट्रांसवाल की दुकानें अपने रिश्ते के भाई तैयब हाजी खान को सौंप रखी थी। उनमें ही कुछ गबन घोटाला हुआ था, जिससे मुकदमा दायर हो गया। दादा अब्दुल्ला की दिक्कत थी कि उनका सारा खाता-बही गुजराती में था। उसे ऐसे वकील की जरूरत थी जो गुजराती जानता हो, अंग्रेजी पर अधिकार हो और जो कुछ महीनों या साल तक नटाल और ट्रांसवाल में रह सके।

उसने पोरबंदर के अपने मित्र लक्ष्मीदास को ऐसा वकील ढूंढ देने को कहा। लड़का घर में ही था और बाहर निकलने के लिए तड़प रहा था। जहाज के टिकट, रहने-ठहरने के खर्च और 150 पाउंड फीस ने गांधी को 23 अप्रैल 1893 को बम्बई से डरबन के जहाज पर सवार करवा दिया।

और मोहनदास को 'दि गांधी' बनाया साउथ अफ्रीका ने।

गांधी में यकीनन बहुत कुछ खास बातें थी, पर खास इंसानों को महामानव बनाने में नियति का भी योगदान होता है। कौन जानता है कि यदि परिस्थितियां वैसी न बनी होती तो गांधी किसी छोटी सी रियासत के दीवान बने रहते या राजकोट में मसौदे लिखकर पेट पालते।

बाकी फिर कभी.....

मस्त रहें, मर्यादित रहें, महादेव सबका भला करें।
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अजीत
30 जनवरी 18

गणतंत्र और हम

विरोध और असंतुष्टि हमारी नसों में कहीं बहुत अधिक गहरे पैवस्त हो चुकी हैं। हमें जब भी कुछ दिखता है तो बस कालिमा दिखती है। हम जब भी बात करते हैं तो बस दोषारोपण करते हैं, और दोष मढ़ कर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेते हैं।

अभी कुछ दिन पहले हमने अपना गणतंत्र दिवस मनाया। हमने मनाया का मतलब सरकार ने, क्योंकि आप तो इस गणतंत्र को गाली दे रहे थे कि हमें क्या मिला इस लोकतंत्र से, इस संविधान से, इस देश से? एक मैसेज बड़ा चला कि हिंदुओं को बांट दिया और मुसलमानों को एकजुट कर दिया। हद्द है! हिंदुओं को बांट दिया और आप अलग हो गए। गोया आपकी कोई मर्जी नहीं, किताब में लिखे चंद अल्फाजों से आप अलग हो गए?

संविधान सभा कोई एकलौती पार्टी की सभा नहीं थी और न ही उस समय की कांग्रेस आज की कांग्रेस जैसी थी। वैसे ही जैसे उस समय की कांग्रेस आजादी से पहले वाली कांग्रेस से अलहदा थी। कांग्रेस का नाम सुनते ही मन में जो गुबार फूटता है उसे उस समय की कांग्रेस पर मत फोड़िये क्योंकि तमाम राष्ट्रवादी लोग उस समय कांग्रेस का हिस्सा थे, और उसी से निकल कर कई लोग जनसंघ इत्यादि में शामिल हुए। बहरहाल,

जब आप भारत के आईन की बुराई करते हैं तो इसे किसी से कम्पेयर भी तो कर के देखिए कि हम किनके मुकाबले बेहतर या बदतर हैं। हमारे साथ ही हमारा ही टुकड़ा पाकिस्तान भी आजाद हुआ था। उसकी हालत देखिए आज। मजहब के नाम पर बने मुल्क में 1954 तक गणतंत्र दिवस मनाया गया फिर वही पाकिस्तान दिवस हो गया क्योंकि वहां गण का, मने लोक का तंत्र रहा ही नहीं। हमारे यहां पहले दिन से यह तय था कि हम चुनाव करवाएंगे, सरकार जनता चुनेगी, एक सुदृढ न्यायपालिका होगी, मीडिया स्वतंत्र होगी। और यह सब कुछ ही दिनों में हो गया। भले ही आजादी के कई सालों तक एक ही पार्टी ने राज किया पर उसे राज करने का अधिकार यहां की जनता ने दिया। यहां के आम चुनाव अनडाक्युमेंटेड वंडर हैं क्योंकि इतने बड़े देश में चुनाव करवाना हँसी खेल नहीं।

पाकिस्तान और बहुत सारे अन्य मुल्क शीत युद्ध के समय अमेरिका या सोवियत रूस की गोदी में बैठ गए। खुदमुख्तारी हासिल नहीं कर पाया पाकिस्तान। वो दिन है और आज का दिन है कि पाक मोहताज बना हुआ है। अमेरिका भीख देता है तो उसके टैंक चलते हैं, उसके जहाज उड़ते हैं। एक हम थे जिन्होंने अपनी बुनियाद मजबूत बनाई, किसी के आगे झुके नहीं और आज का दिन है कि हम दुनिया की आर्थिक महाशक्ति बनते जा रहे हैं।

पाकिस्तान की ही बात करें तो उसने अपने राज्यों को एकीकृत किया, केंद्रीकृत शासन चलाने की कोशिश की और नतीजा, बांग्लादेश अलग हो गया। बलुचिस्तान, पख्तूनख्वा और सिन्धुदेश अलग होने को तड़प रहे हैं (ये सब उस समय खुशी-खुशी राजी हुए थे)। इधर हम हैं जहां सत्ता का विकेंद्रीकरण हुआ। हमने राज्यों को उनकी संस्कृति, उनकी भाषा, उनके रिवाजों के साथ प्रशासन का अधिकार दिया। पाकिस्तान की तरह यूपी और आंध्रा और तमिलनाडु और बंगाल को एक ही लाठी से नहीं हांका, मतलब एक यूनिट नहीं बनाई। एक के बाद एक बनाते गए और आज 29+7 हैं। हमने राज्य की भावना का ख्याल किया जिससे राष्ट्रीयता मजबूत हुई। वहाँ केवल एक भाषा उर्दू को सरकारी भाषा बनाया गया जिससे बाकी भाषा-बोली बोलने वाले जब-तब बवाल काटते रहते हैं, जबकि हमारे यहां 22 सरकारी भाषाएं हैं।

पाकिस्तान तो चलो बकवास देश है। कम्पेयर करते हैं यूरोप के समृद्ध देशों से। आपको जानकर ताज्जुब होगा कि क्राइम के मामले में हम उनसे कहीं बेहतर हैं। माना कि अपराध की संख्या ज्यादा है क्योंकि हम खुद बहुत ज्यादा हैं। अनुपात देखें तो हम कई यूरोपियन मुल्कों से कहीं अच्छे हैं। हमारे यहां गरीबी भी है पर हमारे यहां का गरीब से गरीब आदमी भी शॉपिंग कर सकता है, गिफ्ट दे सकता है, बेटी को पार्क में घुमा सकता है, बीवी को डिनर पर ले जा सकता है और परिवार को बस या ट्रेन से एक से दूसरे शहर ले जा सकता है। यूरोप का गरीब इस बारे में सोच भी नहीं सकता। वहां जो है वो ठीक-ठाक पैसे वालों के लिए है। वो ट्रेन या बस नहीं ले सकता, शॉपिंग नहीं कर सकता, बाहर खा नहीं सकता। या खायेगा भी तो कबाब या ब्रेड, इससे अधिक का मूल्य चुकाना उसके बस की बात नहीं। पर हमारे यहां बाजारों की इतनी वेराइटी है कि अमीर से अमीर और गरीब से गरीब के लिए सुपरमार्केट और बाजार हैं। 10 रुपये से लेकर दुनिया की सबसे महंगी डिश है यहां। यूरोप का गरीब जो ब्रेड और कबाब से ज्यादा सोच नहीं सकता, हमारे यहां मल्टीकुजिन, बोले तो चाइनीज और इटैलियन गलियों में बड़े आराम से ₹10 या ₹20 में मिल जाएगा। यहां हर तरह की लाइफ स्टाइल है।

चीन से तुलना कीजिये। चीन में लोकतंत्र वगैरह तो है नहीं, इंफ्रास्ट्रक्चर है, बड़े बड़े प्रोजेक्ट हैं। आइए, कुछ अपने प्रोजेक्ट देखिए। नवी मुंबई एयरपोर्ट, दुनिया के पांच बड़े एयरपोर्ट में से एक होगा। ऐसे ही हैदराबाद मेट्रो रेल प्रोजेक्ट है। गिफ्ट सिटी का नाम सुना होगा। गिफ्ट सिटी (Gujarat International Financial Tech-City) एक फाइनांशियल हब की तरह विकसित होता शहर है जहां दुनिया की तमाम वित्तीय संस्थाएं काम करेंगी। लंदन से पांच गुना बड़े इस हब में तकरीबन 220 से अधिक गगनचुंबी इमारतें होंगी, जिनमें से 2 तो बन भी चुकी और जिनमें विभिन्न आफिस काम करना शुरू कर चुके हैं।

नर्मदा नदी प्रोजेक्ट है जो चीन की तीन सबसे बड़ी परियोजनाओं की कुल क्षमता एवं लागत से भी बड़ी है। इसमें 3000 डैम हैं जिनसे बाढ़ नियंत्रण, बिजली, पेयजल, कृषि-सिंचाई जैसे तमाम आवश्यकताएं पूरी होंगी।

प्रोजेक्ट्स का ताऊ है अपना दिल्ली-मुम्बई इंडस्ट्रियल कॉरिडोर, मतलब औद्योगिक गलियारा, जो सम्भवतः दुनिया के इतिहास का सबसे बड़ा इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट है। 100 बिलियन डॉलर का यह प्रोजेक्ट देश के छह राज्यों के 1483 किलोमीटर से होता हुआ जाएगा जिसका कवरिंग एरिया छह लाख वर्ग किलोमीटर होगा। आज देश की राजधानी दिल्ली से देश की आर्थिक राजधानी मुम्बई का माल-ढुलाई सफर 4 से 14 दिनों का है जो घटकर 14 घण्टे हो जाएगा। हार्बरों का नवीनीकरण, हाई-स्पीड रेल-रोड, छह लेन का एक्सप्रेस वे, 2 पावर प्लांट, 23 इंडस्ट्रियल हब, 6 एयरपोर्ट, 24 नए स्मार्ट शहर। यह सब बनेगा इस प्रोजेक्ट में, करीब 3 मिलियन नई नौकरियों के सृजन के साथ-साथ जीडीपी में 25% की बढोत्तरी।

यह हवाई बातें नहीं हैं। हो रहा है सब काम। हमें नहीं पता क्योंकि हमारा इंटरेस्ट नहीं है।

इस मुल्क में क्या नहीं है! नमक का रेगिस्तान, लद्दाख का ठंडा रेगिस्तान, राजस्थान का थार रेगिस्तान, वर्षावन, आइलैंड, ज्वालामुखी, विशाल नदियां, सैकड़ों झरने, चाय और कॉफी के बागान, लंबे समतल हरे मैदान, महान हिमालय, 7000 किलोमीटर का कोस्टल एरिया जिस पर कुछ बहुत ही खूबसूरत बीच हैं, महान और दुर्गम किले,  आदिम जातियां जो आज भी अपने उसी रूप में हैं, पुरातन गांव, आधुनिक शहर, टैम्पो से भी कम लागत में मंगल ग्रह तक भेजने की काबिलियत। यहां कल्चरल टूरिज्म है, प्रोफेशनल टूरिज्म है, मेडिकल टूरिज्म है, आध्यात्म है। दुनिया के सभी मजहब यहां हैं। यहां 22 तो ऑफिसियल भाषाएं हैं, 200 के करीब विकसित भाषाएं हैं, 6000 से ज्यादा बोलियां हैं। बताइये कि यहां क्या नहीं है?

एक समय था जब गोरे आप पर राज करते थे और यह केवल 70 साल पहले तक था (किसी राष्ट्र के पैमाने पर देखा जाए तो 70 साल कुछ नहीं होते)। सड़कें और सिनेमाघरों की सीटों पर लिखा होता था कि भारतीय और कुत्ते आर नॉट अलाउड। नैनीताल में 2 समांतर सड़कें हैं, ऊंची वाली पर अंग्रेज और नीची वाली पर हम "कुली" चलते थे। और आज देखिए कि आपका PM जब उनके यहां जाता है तो उनका PM हजारों की भीड़ के सामने गलबहियां डाले फोटो खिंचवाता है।

दुनिया के 90 देश मिला दें तो बनता है एक हिन्दोस्तान। इसकी इज्जत करें क्योंकि यह आपसे नहीं है, आप इससे हैं।

जय हिंद।

बाकी,
मस्त रहें, मर्यादित रहें, महादेव सबका भला करें।
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अजीत
31 जनवरी 18