अब बिहारी को रोकना मुश्किल है, बोतल फेंक के दे मारी और दौड़ते हुए पहुंच गया। ठाकुर भी जाना चाहता है पर 2 कश और बचे हैं, इत्मीनान से फूंककर बिहारी से आ मिलता है। दोनों ने मिलकर उन 4 लड़कों की अच्छी खबर ली। लड़कियां पहले तो डरती हैं फिर मुस्कियाते हुए निकल लेती हैं।
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ठाकुर अपनी फ्रेंड के साथ बैठा है एक पार्क में। कुछ पुलिस वाले आते हैं और हड़का कर पूछते हैं यहां क्या कर रहे हो?
ठाकुर: बैठे हैं।
पुलिस: क्यों बैठे हो?
ठा: टहलने का मन नहीं इसलिए।
पु: जबान लड़ाते हो?
ठा: जवाब देता हूँ।
पु: ये लड़की कौन है?
ठा: दोस्त।
पु: तुम्हारे बाप को पता है?
ठा: पिताजी, पिताजी बोलिये, नहीं उन्हें नहीं पता, पर आप चाहें तो बता सकते हैं।
पु: तो घर पर ही क्यों नहीं मिलते?
ठा: क्योंकि पार्क इसीलिए बने हैं, ये रसीद देखिये, एंट्री फीस भरी है।
पु: चलो घर जाओ, भले घर के बच्चे पार्कों में नहीं आते।
ठा: आप कहते हैं तो ठीक है, पर ये रविदास पार्क है, उधर आजाद मैदान है, इन महापुरुषों के पार्क में क्या बुरे घर के ही बच्चे आ सकते हैं?
पु: चल भाग यहां से।
ठा: जी नमस्ते।
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बिहारी: यार ठाकुर, काम तो सही कर रही है गोरमेन्ट, पर जे का बात हुई, नाम तो सही रखते, एंटी रोमियो स्क्वाड, हुंह। अरे कितना सुन्दर नाटक लिखा है शेक्सपीयर ने, और जे रोमियों को ही बदनाम कर रहे।
ठाकुर: तेरी बात भी सही है पर इसी शेक्सपीयर ने बोला था ना कि "व्हाट इज इन द नेम", फिर नाम को लेकर इत्त्ता क्यों परेशान होना। चल सिगरेट इधर ला, आधी फूंक गया।
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अजीत
24 मार्च 17
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