हरिशंकर बाबू का खानदान बहुत इज्जतदार था, अब कम से कम वे तो ऐसा ही मानते थे। उनके बाउजी ने बताया था, और उनका भी दृढ़ विश्वास था कि इज्जत पैसों से आती है और पैसे ज्यादा से ज्यादा "लेने" में। अब वो चाहे टूथपेस्ट का प्लास्टिक तक चबा जाना हो या सब्जी तौलवाते समय 'घलुआ' में पाव आधा किलो ज्यादा ले लेना। ये सब तो खैर छोटी छोटी सेविंग थी, असली बचत तो उनके तैयार हो रहे बच्चे थे। उनके बाउजी ने भी खूब लिया था, अपने समधी को निचोड़ दिया था, और हरि बाबू को प्रयोगात्मक सीख दे गए थे कि जितना भी जमा-जथा कर लो, असली माल तो दहेज से ही मिल सकता है, एक बार ही मौका मिलता है, देख ताक कर, समझ बूझ कर समधी चुनो, ज्यादा से ज्यादा मांगो। घर-बार तो भरता ही है, आस पड़ोस भी जितना ज्यादा सामान देखेगा, उतनी ही इज्जत करेगा, कि देखो भाई, इत्ता इत्ता सामान मिला है तो बात होगी लड़के और ऊके बाप में, नहीं तो इत्ता सामान कौन देता है भला।
हरि बाबू भगवान से जितने खुश कि इतनी गुणवान स्त्री दी, उससे कहीं ज्यादा पत्नी से सन्तुष्ट कि उसने जब भी दिया, बेटा ही दिया। तीन बेटों का बियाह निपटा चुके थे, अब बेटे भले उतने काबिल नहीं निकले थे, फिर भी जम कर दान दक्षिणा वसूल चुके थे। 'सातों' गांव में लिए गए दहेज और हरि बाबू की ही चर्चा छाई रही कई दिनों तक। अबकी पूरे 'परगना' में फेमस होना चाहते थे, छोटुआ था भी तो बहुते काबिल, आबकारी निकाल लिया था। मक्खी की तरह आते तिलकहरू, पर कोई मोटा बकरा नहीं फँसता। कोई बात नहीं, अभी 2-3 साल और देख सकते थे, कभी तो कोई चर्बीदार फँसेगा ही।
अगुआ एक रिश्ता लेकर आये, साझा खानदान की इकलौती लड़की, लंबी, गोरी, सुन्दर। इन सबके अलावा एक बात ये भी कि आप उसे सौ बातें सुना दो, छत्तीस गालियां दे लो, उफ्फ नहीं करेगी, पलट के जवाब नहीं देगी, बिलकुल गऊ, लब्बोलुआब ये कि जन्मजात गूंगी थी।
पारसनाथ बाबू भी खोज ही रहे थे कि इज्जतदार घराना मिले तो कन्यादान करें। लड़की महंगाई की तरह बढ़ती जा रही थी पर जानते बूझते मक्खी कौन निगलना चाहता है। पहुंचे हरि बाबू के यहां, साफ़ बताया कि देखिये लड़की में सारे गुण हैं, बस बोल नहीं सकती, बाकी जो आप बताइये।
हरि बाबू को लम्बी तपस्या का फल मिल रहा था, अंतिम और सुनहरा मौका, बोले देखिये साहब, हमें अपनी इज्जत बहुत प्यारी है, लड़की में 'हमें' तो ऐसा कोई दोष नहीं दिखता, बल्कि ये गुण तो औरतों में होना ही चाहिए, आप बस ये देख लीजिए कि इस शादी को लोग लंबे समय तक याद रखे। ये भी है कि आपकी लड़की की तीन जेठानियाँ होंगी, जो उसे ताने वाने मार सकती हैं। तो उनका मुँह भी तभी बन्द होगा जब उन्हें अपने मायके के तोहफे कमतर लगें। बाकि आप तो समझदार हैं ही, जो करेंगे सोच समझ कर ही करेंगे।
पारसनाथ जी भी सोच समझ कर ही चले थे रिश्ता करने, हिसाब किताब बैठा चुके थे, बोले, आप कुछ तो बोलिये। थोड़ी देर टालमटोल करने के बाद मांगों की जो बाढ़ आई की पारस बाबू लड़खड़ा गये। अनुमान का तिगुना खर्च हो जाने की संभावना बन रही थी, और हरि बाबू तो अब भी बोले ही जा रहे थे। बड़े यत्न से रोका उन्हें और कहा कि साहब आप मुँहजुबानी जो इतना कुछ बता रहे है, इतना सब तो मैं याद भी नहीं कर सकता, आप लिख कर दे दो।
तीन दिन बाद यत्नपूर्वक बनाई गई लिस्ट पारस बाबू के हाथों में थी। थोड़ी गुंजाइश बनाने के लिए फोन मिलाया तो आठ आइटम और जुड़वा बैठे। साथ में ये चेतावनी कि अगर एक भी सामान कम हुआ तो हम उठ जाएंगे, आखिर हमारी इज्जत का सवाल है।
लिस्ट के सामान जुटाते जाते और कुछ छूट मिल जाए इस उम्मीद में फोन करते, पर उधर से चेतावनी और इज्जत का हवाला दोहरा दिया जाता। छछूंदर जैसी हालत हो गई थी। समझ में नहीं आता कि कैसे करेंगे सब, गूंगी लड़की के लिए सह रहे थे इतना, ये भी समझते थे कि अगर इतना सामान दे दिया तो भले कंगाल हो जाएं पर बिटिया प्रसन्न रहेगी ससुराल में। भला कोई उस लड़की को कुछ बोल सकता है जो मुँहमाँगा दहेज लाई हो।
फिर से लिस्ट में सर घुसाया और अचानक ही उनकी आंखें चमक गई।
शादी के तीन दिन पहले तिलक में सारा सामान पहुंचा दिया। हरि बाबू लिस्ट से एक एक सामान मिलाते जाते और गदगदाते जाते, बोले पारस बाबू हमारी इज्जत बढ़ा दिए आप। पारस बाबू हाथ जोड़ बोले, समधी जी, फिर से देख लीजिए, कुछ छूट गया हो तो आदेश कीजिये। कुछ छूटा होता तब न बोलते, पर फिर से देखा जरूर।
--------------------------------------------------------------------
बारात लेकर जैसे ही उतरे बाबू साहब, भौचक, कही कोई पंडाल नहीं, टेंट नहीं, कुर्सी नहीं, फोल्डिंग नहीं, जलपान नहीं। खाली एक मंडप, जहां शादी होनी थी। तमतमाया चेहरा लिए पारस बाबू से कुछ बोलने को हुए, उससे पहले ही पारस बाबू हाथ जोड़ बोले, क्यूँ बाबू साहब, लिस्ट में कुछ रह गया था क्या? बाकी उसमें बरात स्वागत तो लिखा था नहीं।
--------------------------------------------------------------------
(सूबा बिहार में घटी सत्यघटना पर आधारित)
अजीत
20 जनवरी 17
No comments:
Post a Comment