Monday, 28 May 2018

वृद्धाश्रम

यहाँ रविवार को साप्ताहिक हाट लगती है। सब्जी, फल, बर्तन, मसाले, अनाज, कपड़े इत्यादि बिकते हैं। लोग अधिकतर सब्जियां और फल लेने ही जाते हैं। मैं भी करेले तुलवा रहा था कि एक करीब 70-75 वर्ष की महिला आई और बैंगन छाँटने लगी। साफ दिख रहा था कि अम्मा की बिनाई कमजोर है क्योंकि उन्होंने एक बैंगन ऐसा नहीं उठाया जिसमें कीड़े न लगे हों।

इन्हें पहचानता था मैं। स्वर्गीय प्रोफेसर की पत्नी, प्रोफेसर की माँ और प्रोफेसर की दादी। इनका पोता अमित, असिस्टेंट प्रोफेसर मेरा जूनियर कम मित्र है। मैं समझ नहीं पाया कि इतने सम्पन्न होने के बाद, नौकरों की फौज होने के बाद भी इन सबने इन्हें सब्जी लाने क्यों भेजा। सोचते-सोचते गुस्सा आ गया और अपने घर सब्जी पहुँचा कर अमित के घर पहुंच गया। बैठते ही इस ज्यादती का जवाब जानना चाहा।

अमित थोड़ा सा मुस्कुराया और मुझे अपने साथ अपने किचन में ले गया। ताजी और सुंदर-सुंदर सब्जियों से भरे दो थैले रखे थे और सड़े हुए बैंगन डस्टबीन में। मैं आश्चर्य से उसे देखता रहा तो अमित की पत्नी मुझे चाय पकड़ाते हुए बोली कि क्या हुआ भैया! मुँह बन्द कीजिये वरना मक्खी घुस जाएगी।

झेंपता हुआ सोफे पर बैठा तो अमित ने बताया कि उनकी दादी इतनी बुजुर्ग होने पर भी अशक्त नहीं हैं। और वे सब यही चाहते हैं कि उनके मन में यह विचार बना रहे कि वे ही घर की मुखिया हैं। वे हाट से सब्जियां ले कर आती हैं, और अगर सब्जियां खराब हो तो हम उसे ताजी सब्जियों से बदल देते हैं। थोड़े से पैसों के बदले दादी का आत्मसम्मान बना रहता है। मेरी तरफ देखकर पूछा था उसने, "ये सौदा बुरा तो नहीं है न भैया?"

मैंने चाय पी, उससे हाथ मिलाया, उसके कंधों को थपथपाया और जब बाइक पर बैठ कर वापस चला तो शायद मेरे चेहरे पर मुस्कान थी।
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अजीत
28 मई 2018