"अब अइसन तो कउनो बात नहीं है परेश भैया, पर जो रिनवा है ना, हमको बहुत पसंद है। उसको देखते ही दिल बमक जाता है।"
"तो बेटा, तनी कम बमकाओ, बीबीए वाला प्रकाश तुमसे पहले दावा ठोक चुका है। हम तो कह रहे बेटा पसन्द बदल लो, खुश रहोगे।"
-------------------------------------------------------------------------------------------------
फिल्मों ने वैसे ही दिमाग खराब किया होता है, रही सही कसर ये स्कूल सिस्टम, जी आई सी अलग, जी 'जी' आई सी अलग। बचपन से ही लड़को लड़कियों को एक दूसरे से इतना दूर रखा जाता है कि जब ग्रेजुएशन में ये साथ आते है तो वो भरी हुई उत्कंठा, कुंठा, हार्मोन सब ललक ललक कर बाहर आना चाहते हैं।
कोढ़ में खाज ये कुकुरमुत्ते की तरह उगे इंस्टिट्यूट। इनको बस पैसे से मतलब, कोई भी आ जाये, पैसे पूरे भरे तो सीट पक्की। एक एक क्लास में अस्सी नब्बे बच्चे, और क्लास भी मुर्गी के दड़बे जैसी। ऊपर से तुर्रा ये कि अभी तक एक दूसरे को एलियन समझने वाले छोरो छोरियों को मॉडर्न बनाना है, तो पहले जहां बेमतलब की रोक थी अब अत्यधिक खुलापन। दिमाग खराब होना लाजमी है।
सीनियर्स जूनियर लड़कियों पर अपना हक समझते हैं, बाकायदा छांटी जाती है लड़कियां, ये मेरी, वो मेरी। अजय सेकंड ईयर में था। एक साल के इंतजार के बाद उसका मौका आया था, और छांटा भी तो किसे, रीना, अब तक कि सबसे सुंदर लड़की। पर अभी अभी परेश सर ने बताया कि प्रकाश भी....।
--------------------------------------------------------------------------------------------------
"अरे अजय, अजय, अबे अजयवा... सारे सुन के अनसुना करते हो।"
"प्रकाश! कैसे हो, सच में सुना नहीं, क्लास के लिए देर हो रही है, जल्दी में था..."
"बेटा, जल्दी में तो तुम हो ही, कुछ ज्यादा ही जल्दी में। सुनो, रीना तुम्हारी भाभी लगेगी, तो कायदे से रहोगे तो फायदे में रहोगे।"
-------------------------------------------------------------------------------------------------
"अबे अजयवा, रुक सारे, कहाँ भागा जा रहा है...
तुमको मना किये थे ना, बोले थे ना दूर रहने को उससे। बड़ा इंट्रो लेने वाले बने हो, कल लाइब्रेरी में काहे छेंक लिए थे उसे? बोले थे ना भाभी है तुम्हारी। बिना लप्पड़ खाये नहीं मानोगे? लो सारे, आज प्रसाद लेते जाओ, तुम्हरा गोड़ तोड़ देते हैं, महिंन्ना भर आराम करो। लो चखो..."
------------------------------------------------------------------------------------------------
"अरे प्रकाश बेटा, देखो तुम्हारे दोस्त आये हैं। आज होली है, छोड़ो ये कंप्यूटर, जाओ होली खेलो, देखो सब कैसे बन्दर बने हुए हैं। एक भी पहचान में नहीं आ रहा। जाओ जाओ, एक दो घण्टे में वापस आ जाना।"
------------------------------------------------------------------------------------------------
उस होली की दोपहर पटाखों की आवाज आई थी। घर से थोड़ी ही दूर रेत के छोटे से ढेर पर प्रकाश औंधे मुँह पड़ा मिला था। रेत ने काफी कुछ सोख लिया था पर रंगत लाल थी।
कॉलेज में शोकसभा हुई थी।
प्रकाश के माता पिता अपने एकलौते बेटे का गम सह नहीं पाए, शहर काटने को दौड़ता, नौकरी छोड़ गांव चले गए।
प्रकाश के हत्यारों का कभी पता नहीं चला।
रीना कभी जान ही नहीं पाई कि कितने लड़के पागल थे उसके पीछे। सुना अपने NRI पति के साथ खुश है कही किसी और देश में।
-----------------------------------------------------------------------------------------------
(सत्य घटना पर आधारित)
अजीत
18 अप्रैल 17