ठाकुर:
का बे शुक्ला, मउगा हो बे तुम एकदम, मर्द बनो मर्द, ये साले कोई मर्दों के काम हैं? जब देखो तब औरतपना फैलाये रहते हो। सुना नहीं है क्या, जिसका काम उसी को साझें, का जरूरत है तुम्हें सब्जी-फब्जी काटने की, बेटा घर में औरत ले आये हो तो का पूजा करने लिए लाये हो, उसे ही करने काहे नहीं देते ये सब काम।
का बे शुक्ला, मउगा हो बे तुम एकदम, मर्द बनो मर्द, ये साले कोई मर्दों के काम हैं? जब देखो तब औरतपना फैलाये रहते हो। सुना नहीं है क्या, जिसका काम उसी को साझें, का जरूरत है तुम्हें सब्जी-फब्जी काटने की, बेटा घर में औरत ले आये हो तो का पूजा करने लिए लाये हो, उसे ही करने काहे नहीं देते ये सब काम।
अबे शास्त्रो में लिखा है, सकल ताड़ना के अधिकारी, और तुम ससुर लल्लो चप्पो में लगे रहते हो। इतना प्यार दिखाओगे न, त ये जो औरत जात है न, सर चढ़ जाती है। लिख लो, बताये दे रहे हैं, नारी नारी सब करे, नारी नरक का द्वार।
सुना तुम खाना बनाते हो, बर्तन-कपड़े भी धो देते हो, इस्तरी भी कर लेते हो, ससुर तो तुम स्त्री मने पत्नी लाये काहे, कुँवारे बने रहते। तुम जैसे बिना रीढ़ के आदमियों की वजह से ही इन औरतों के दिमाग खराब होते हैं। कभी सरदर्द का बहाना तो कभी कमरदर्द का। बेटा इनकी सुनेगा ना तो नौकर बन के रह जाएगा, बताये दे रहा हूँ...
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शुक्लाइन:
ये जब सुबह सुबह उठकर मेरे लिए चाय बना देते हैं न, चाय नहीं बनाते, मेरा दिन बना देते हैं। सच, सुबह सामने मुस्कुराते चेहरे के साथ जब ये चाय के लिए धीरे से आवाज देते हैं न, तो मन में जैसे सितार बजने लगता है। उसके बाद तो दिन भर की भाग दौड़...
ये जब सुबह सुबह उठकर मेरे लिए चाय बना देते हैं न, चाय नहीं बनाते, मेरा दिन बना देते हैं। सच, सुबह सामने मुस्कुराते चेहरे के साथ जब ये चाय के लिए धीरे से आवाज देते हैं न, तो मन में जैसे सितार बजने लगता है। उसके बाद तो दिन भर की भाग दौड़...
सुनिये शुक्ला जी, ये जो ऑफिस से घर आते ही किचेन में घुस जाते हो ना, मुझे बिलकुल अच्छा नहीं लगता। दिन भर के थके हारे, जा कर आराम करो, टीवी देखो, ये क्या कि आये और धड़धड़ाते हुए किचेन में। अभी परसो ही हाथ काट लिया था तुमने, आलू तो काट नहीं पाते, आये बड़े संजीव कपूर।
सुनो, इतने दिन हो गए इस शहर में आये, कभी किसी के यहां चाय पर भी नहीं गए हम। परसों जो ठाकुर साहब आये थे, कितना कह गए थे आने को, चलो ना उनके यहां ही चला जाए। ठीक है....
ठीक...
बस 10 मिनट में होती हूँ तैयार।
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ठकुराइन:
मेहमान? आज? देखों, आज मेरा मन नहीं है किचेन में सड़ने का, मना कर दो उन्हें। नहीं कर सकते? सुनो ये ज्यादा बकैती मेरे सामने नहीं चलेगी हाँ, बताये दे रही हूँ। ये वही शुक्ला है ना जो तुम्हें उलटे सीधे पाठ पढ़ाता रहता है? खूब जानती हूँ इन मर्दों को, खुद तो अपने घर में भीगी बिल्ली बने रहते हैं और दूसरों के आगे शेर बनते हैं। दफा करो ऐसे आदमियों को, चलो बन्द करो ये टीवी और सुनों, आटा गूंथ दो फिर मशीन में कपड़े डाल देना। हाय मेरी कमर...
मेहमान? आज? देखों, आज मेरा मन नहीं है किचेन में सड़ने का, मना कर दो उन्हें। नहीं कर सकते? सुनो ये ज्यादा बकैती मेरे सामने नहीं चलेगी हाँ, बताये दे रही हूँ। ये वही शुक्ला है ना जो तुम्हें उलटे सीधे पाठ पढ़ाता रहता है? खूब जानती हूँ इन मर्दों को, खुद तो अपने घर में भीगी बिल्ली बने रहते हैं और दूसरों के आगे शेर बनते हैं। दफा करो ऐसे आदमियों को, चलो बन्द करो ये टीवी और सुनों, आटा गूंथ दो फिर मशीन में कपड़े डाल देना। हाय मेरी कमर...
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ठाकुर (फोन पर): हाँ शुक्ला, सुन, निकल गए क्या तुम लोग, यार एक्चुअली एक इमरजेंसी आ गई है आज तो...
शुक्ला: कोई बात नहीं यार, हम फिर कभी आ जाएंगे, तू कपड़े धो ले...
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अजीत
31 अक्टूबर 16
31 अक्टूबर 16